“चीनी लड़ियाँ-झालर घर में कभी न लायें हम”
इस दीवाली पर माटी के,
आओ दीप जलायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
आओ स्वच्छता के नारे को,
दुनिया में साकार करें।
नहीं विदेशी सामानों को,
जीवन में स्वीकार करें।
छोड़ साज-संगीत विदेशी,
अपने साज बजायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
कंकरीट की खेती से,
धरती को हमें बचाना है।
खेतों में श्रम करके हमको,
गेहूँ-धान उगाना है।
अपने खेतों की मेढ़ों पर,
आओ वृक्ष लगायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
मजहब के ठेकेदारों की
बन्द दुकानें अब कर दो।
भारत में भाईचारे की,
चलो भावना को भर दो।
लालन-पालन करने वाली,
माँ की महिमा गायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
असली घर में नकली पौधों
का, अब कोई काम न हो।
कुटिया में महलों में अपने
कहीं छलकते जाम न हो।
बन्द करो मय-खाने, अब ये
शासन को चेतायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
देव संस्कति को अपनाओ,
दानवता से मुँह मोड़ो।
राम और रहमान एक हैं
मानवता को मत छोड़ो।
भेद-भाव, अलगाववाद का,
वातावरण मिटायें हम।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
दीपमालिका पर दीपों से,
जगमग कुटिया-भवन करें।
मुसलिम पढ़ें नमाज और
सब हिन्दु मिलकर हवन करें।
घर-आँगन को स्वच्छ करें,
पावन परिवेश बनायें हम।।
चीनी लड़ियाँ-झालर अपने,
घर में कभी न लायें हम।।
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)