इंतजार
जिंदगी गुजर रही ,सोच-सोचकर यही
रात ये ढलेगी जब, खिलुँगा मैं फिर तभी
जब चला मैं दो कदम,दिल मेरा यूँ कह गया
इरादों का एक कारवां, अंतर्मन से बह गया
थमा-थमा सा मैं रूका,वक्त के पड़ाव पर
मंथन विचार हो रहा,टूटकर जुड़ाव पर
धधक-धधक रहे शब्द, वर्तमान देख कर
खुशियाँ बना रहा हुजूम, पत्थरों को फेंक कर
मंच-मंच सज रहे ,झुठ के गुबार में
झुक रहा गरीब फिर,लंबे इंतजार में