कविता

इंतजार

जिंदगी गुजर रही ,सोच-सोचकर यही
रात ये ढलेगी जब, खिलुँगा मैं फिर तभी

जब चला मैं दो कदम,दिल मेरा यूँ कह गया
इरादों का एक कारवां, अंतर्मन से बह गया

थमा-थमा सा मैं रूका,वक्त के पड़ाव पर
मंथन विचार हो रहा,टूटकर जुड़ाव पर

धधक-धधक रहे शब्द, वर्तमान देख कर
खुशियाँ बना रहा हुजूम, पत्थरों को फेंक कर

मंच-मंच सज रहे ,झुठ के गुबार में
झुक रहा गरीब फिर,लंबे इंतजार में

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733