माँ
मिल रही सबको ज़िन्दगी माँ से।
आदमी आज आदमी माँ से।
हर तरफ आज रौशनी़ माँ से।
मिल रही मुझको ताज़गी माँ से।
दूर होती है तीरगी माँ से।
दीन दुनिया की रौशनी़ माँ से।
क्याखुदाऔरउसकी कुदरत क्या,
मैंने सीखी है बन्दगी माँ से।
दूर जाना तेरा उसे सदमा,
मत करो यार दिल्लगी माँ से।
उसके बिन है यहाँ सभी सूना,
घर में पूरे है नगमगी माँ से।
— हमीद कानपुरी