गीत
मेरी अर्धांगिनी के जन्मदिवस पर :-
विकल हुआ जब हृदय मेरा
तुम्हें पुकारा अंतर्मन से
जल तेरे नयनों से माँगा
नभ के श्यामल बादलों ने
तेरा सौंदर्य चुराया
झील के सब शतदलों ने
ध्वनित हो रहा नाम तेरा
विस्तृत वसुधा के कण-कण से
विकल हुआ जब हृदय मेरा
तुम्हें पुकारा अंतर्मन से
सोम-सा तू प्रकाश पुंज है
निशा के अथाह अंधकार में
दृष्टिगोचर तू ही मेरे
आचरण में और विचार में
आज पुनः तेरी विरह में
गिर पड़े अश्रु नयन से
विकल हुआ जब हृदय मेरा
तुम्हें पुकारा अंतर्मन से
क्षितिज पर होता आभासित
धरा-नीरद का आलिंगन
सागर के तट की मैं शिला
तू वेग से बहता प्रभंजन
शाश्वत ये प्रेम अपना
है परे जीवन-मरण से
विकल हुआ जब हृदय मेरा
तुम्हें पुकारा अंतर्मन से
आभार सहित :- भरत मल्होत्रा।