संस्मरण

बसंत बहार

आज ऑस्ट्रेलिया में सुबह बारिश हो रही थी. बारिश रुकते ही मैं सैर पर निकली. पूरे रास्ते में बैंगनी रंग के शहनाई जैसे फूल बिखरे पड़े थे. ऐसा लग रहा था मानो प्रदीप कुमार-बीना राय ताजमहल फिल्म के गाने ”पांव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी” की शूटिंग चल रही हो और मैं गा रही थी ”पांव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी.” बसंत बहार यहां पूरे निखार पर है. यहां सर्दी विदा होने को है, गर्मी आने को तैयार है. मुझे याद आया, भारत में भी बसंत बहार यहां पूरे निखार पर होगी. वहां गर्मी विदा होने को होगी, सर्दी दस्तक देने को तैयार है. वहां सरसों के पीले फूल शबाब पर होंगे, यहां हम रसीले आम के मजे लूट रहे हैं.

बैंगनी रंग के शहनाई जैसे ये फूल मुझे 1959 में ले गए. हमारे म्यूजिक के अनूप सर ने हमें बसंत पंचमी के लिए एक गाना सिखाया-

”आज बन-बन में बगिया में, बन-बन में बगिया में बसंत छाया रे
बसंत छाया, बसंत छाया, बसंत छाया रे- आज बन-बन में बगिया में”

प्यारा-सा बसंत का यह गाना हम सब छात्राओं को एक ही बार में याद हो गया. उसके बाद उस पर नृत्य के स्टैप सिखाए. उनको अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी. हमने जल्दी ही सारे स्टैप कैच कर लिए. अगले दिन फंक्शन में यह आइटम सुपर हिट रहा. बसंत पंचमी का यह गीत और नृत्य के स्टैप आज भी मुझे याद हैं, क्योंकि मैं जिस भी स्कूल में गई बसंत पंचमी पर यह गीत और नृत्य छात्राओं को सिखाती रही.

गीत और नृत्य से अनूप सर की और भी बातें याद आ गईं. अनूप सर को प्रतिभा की पहचान तो थी ही, प्रोत्साहन देने का हुनर भी कमाल का था. उन्होंने हर साज बजाने में मुझे प्रशिक्षित किया. कत्थक नृत्य में तबले की संगत प्रमुख होती है, तो उसमें मेरे से हारमोनियम बजवाते थे-

”ग SS ग सा ग म नी प, ग SS ग रे सा रे नि सॉ” की मधुर धुन मैं बजाती थी, सर तबला बजाते थे. कहीं मुझसे तबला-ढोलक बजवाते, कहीं सितार बजवाते. किसी भी सांस्कृतिक कार्यक्रम में जितने भी आइटम होते थे, उनमें मै कुछ-न-कुछ अवश्य कर रही होती थी.

हम अपने हुनर को जितना बांटें उतना ही बढ़ता जाता है. अनूप सर का सिखाया राग खमाज त्रिताल की बंदिश ”सदा शिव भज मना, निशिदिन आज भी सरगम सहित मैं गुनगुना सकती हूं, क्योंकि यह बंदिश मैं कम-से-कम 100 छात्राओं-सखियों को हारमोनियम-कैसियो पर बजाना सिखा चुकी हूं.

समय आने पर मैं भी अपनी छात्राओं के साथ प्रोत्साहन देने के हुनर का प्रयोग  करती रही. बसंत बहार की यह महफिल आज भी सुवासित है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “बसंत बहार

  • लीला तिवानी

    ऑस्ट्रेलिया में बारिश का मौसम कोई ख़ास नहीं होता है. 12 महीने बारिश चलती रहती है. सब लोग अपनी कार में छाता अवश्य रखते हैं. बारिश थोड़ी देर में रुक भी जाती है और ड्रेनेज सिस्टम अच्छा होने के कारण सड़कें एकदम साफ रहती हैं.

    प्रदीप कुमार-बीना राय वाली ताजमहल फिल्म 1962 में बनी. इस फिल्म का गाना ”पांव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी” लता मंगेशकर, मुहम्मद रफी द्वारा गाया गया अत्यंत सुमधुर गाना है. इसका फिल्मांकन भी अत्यंत खूबसूरत हुआ है.

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