लघुकथा

तू मेरा दोस्त

अपनी जिंदगी से निराश सूरज अचानक दौड़ पड़ा था कुएं की ओर । इससे पहले कि वह कुएँ में छलाँग लगा पाता वहीं नजदिक ही खड़े उसके जिगरी दोस्त सोहन ने दौड़कर उसकी बाँह पकड़कर उसे कुएँ में कूदने से बचा लिया । लेकिन आत्महत्या करने पर आमादा सूरज उसकी गिरफ्त से छूटने की कोशिश करते हुए उसे भद्दी भद्दी गालियाँ देने लगा । तब तक बहुत सारे लोग आ चुके थे । उनकी गिरफ्त में आत्मसमर्पण कर चुका सूरज अभी भी सोहन को गालियाँ देते हुए चीखे जा रहा था ,” मेरी किसी भी काम में मदद करने की बजाय तू मेरी टाँग ही खिंचता है । तू मेरा दोस्त नहीं हो सकता ! “
कपड़े पर लगी धूल झाड़ते हुए सोहन ने भगवान का शुक्र अदा किया और मुस्कुराते हूए अपने घर की तरफ चल दिया ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।