भारत की राजधानी बनाम प्रदूषण की राजधानी
अभी पिछले दिनों सोशल साइट्स पर दिल्ली के अत्यन्त दुखद प्रदूषण पर मशहूर शायर शहरयार के एक मशहूर शेर का प्रयोग करते हुए एक लतीफा बहुत वाइरल हुआ था। लतीफा यह था कि ……,
‘सीने में जलन, आँखों में तूफान सा क्यों है,
इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है ….’
………तुम दिल्ली में तो नहीं हो ? ‘
इसे लतीफा कहना बेमानी होगा, क्योंकि दिल्ली जैसे महानगरों की भविष्य की भयंकर तबाही का आलम की सच्चाई इसमें झलकती है।
विश्व में नई दिल्ली भारत की राजधानी के साथ प्रदूषण की राजधानी के रूप में भी मशहूर हो चली है। यहाँ प्रदूषण का आलम ये है कि विदेशी क्रिकेट टीमों के साथ-साथ रूस के सूदूर उत्तरी साइबेरिया और उत्तरी यूरोप से आने वाले प्रवासी पक्षी भी जो लाखों वर्षों से दिल्ली चिड़ियाघर और उसके आसपास के जलाशयों में उत्तर के जाड़े के कंपकंपाती ठंड से बचने के लिए प्रति वर्ष आते थे, समाचार पत्रों के अनुसार वे गहरे धुंध, धुंए और जहरीली गैसों से लिपटी दिल्ली को दूर से ही देखकर अपने सामान्य प्रकृति प्रदत्त ज्ञान से अपना ठिकाना कहीं और खोजकर वहाँ चले जाते हैं, जहाँ का वातावरण स्वच्छ और निर्मल हो। वास्तव में प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति बहुत ही भयावह है। अभी भी हम, हमारा समाज और हमारी सरकारें नासमझ बनकर, इस दुखद प्रदूषण को लेकर ‘बहुत ही लापरवाह’ हैं।
भारतीय संस्था ‘ग्रीन पीस इंडिया ‘ की एक रिपोर्ट ‘एयरपोक्लिपस’ में भारत के 280 शहरों जिनमें भारत 53 प्रतिशत आबादी (लगभग 65 करोड़) रहती है वहाँ पीएम-10 की मात्रा सामान्य से बहुत ज्यादे पाई गई है। अत्यन्त दुख की बात है कि महाशक्ति बनने को अग्रसर भारत में 47 प्रतिशत लोगों के बारे में प्रदूषण आकलन का कोई व्यवस्था ही नहीं है। (पीएम का मतलब पर्टिकुलर मैटर या सूक्ष्म कण पदार्थ, पीएम 2.5 मतलब जिन कणों का आकार 2.5 माइक्रोमीटर या कम और पीएम-10 मतलब जिन कणों का आकार 10 माइक्रोमीटर के बराबर हो)
मेडिकल जर्नल ‘द लांसेट ‘ के अनुसार प्रतिवर्ष भारत में प्रदूषण से 10 लाख लोग मर जाते हैं, परन्तु अत्यन्त दुखद है कि 2015 में प्रदूषण की अधिकता से उस साल भारत में 25 लाख लोगों से भी ज्यादा की मौत हुई। दुनियाभर में प्रदूषण से कुल मरने वालों में अकेले भारत में 28 प्रतिशत लोग मरते हैं। दावोस में पर्यावरण निस्तारण सूचकांक { इनवायरमेंटल परफार्मेंस इंडेक्स } की रिपोर्ट में दुनिया के कुल 180 देशों की सूची में भारत की अत्यन्त दयनीय है। वह पाकिस्तान से भी बदतर स्थिति में नीचे से चौथे स्थान पर मतलब 177 वें स्थान पर है। वायु प्रदूषण से मतलब डीजल और पेट्रोल चालित गाड़ियों, कारखानों की चिमनियों, धूल, धुँआ आदि से है। इसमें समस्त जीव जगत के स्वास्थ्य लिए अत्यन्त घातक गैसों जैसे कार्बनडाई ऑक्साइड, कार्बनमोनो ऑक्साइड, सल्फरडाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड, पीम-2.5 सूक्ष्म कण, पीएम-10 कण, धूल, धातुओं के कण (सीसा के सूक्ष्म कण) आदि सम्मिलित होते हैं। स्वास्थ्य के लिए उक्त अत्यन्त हानिकारक गैसों के अतिरिक्त पीएम-2.5 ऐसे सूक्ष्म कण होते हैं, जिनसे बचाव के लिए मानव शरीर में कोई भी सुरक्षात्मक अंग नहीं है, न कोई मेडिकल साइंस इससे बचाव हेतु कोई वैज्ञानिक उपकरण अभी तक उपलब्ध करा पाया है। पीएम-2.5 की बाहुल्य वाले स्थानों पर रहने को मजबूर लोगों के फेफड़ों में जाकर उसके कण फेफड़ों के सूक्ष्म कैविटी में अन्दर धंस जाते हैं, जो वहाँ की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त करके ‘ कैंसर ‘ जैसी प्राणान्तक बिमारी को जन्म देते हैं। यह पीएम-2.5 सबसे ज्यादे जेनेरेटरों और डीजल और पेट्रोल चालित गाड़ियों से निकलते हैं। इसीलिए फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित मरीजों में आधे से ज्यादे मरीज आधुनिक हाई-वे के किनारे रहने वाले लोग हैं। इसके अतिरिक्त ‘ये कण ‘ त्वचा कैंसर, हार्ट अटैक और ब्रेन हैमरेज जैसी अति भयावह बिमारियों के भी कारण हैं।
मनुष्य के अच्छे स्वास्थ्य के लिए पीएम-10 .. 100 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर तक और पीएम-2.5.. 60 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर से ज्यादे नहीं होनी चाहिए, परन्तु अत्यन्त दु:खद है कि दिल्ली और इसके आसपास के शहरों में इस दिवाली पर सुप्रीम कोर्ट के समस्त मानव समाज के भलाई और कल्याण हेतु एक बहुत अच्छे मार्मिक आदेश के बावजूद कुछ कथितधार्मिक उदण्ड, नासमझ मूर्खों के जानबूझकर एक सीमा से भी अधिक पटाखों और आतिशबाजी करने से पीएम-10 का स्तर 1000 तक और पीएम-2.5 का स्तर 745 तक के भयानक स्तर तक पहुँच गया। भारत की गरीब जनता की मौत की खबर तो आँकड़े इकट्ठे करने वाली संस्थाओं के माध्यम से कई सालों बाद पता चलती है, परन्तु भारत सरकार के केन्द्रीय मंत्री स्वर्गीय अनन्त कुमार हेगड़े की कैंसर से मौत और वर्तमान गोवा के मुख्यमंत्री (पूर्व रक्षामंत्री, जो कुछ समय पूर्व तक दिल्ली में थे) अभी भी कैंसर से जीवन और मौत का संघर्ष कर रहे हैं, यह सभी को पता है। अतः हम सभी का यह पावन कर्त्तव्य है कि हम सभी भारतवासी बगैर किसी जातिगत् व धार्मिक भेदभाव के प्रदूषण को कम करने का व्यक्तिगत प्रयास भी करें। कैंसर, हृदयाघात, ब्रेनहेमरेज जैसी प्राणघातक बिमारियों की बहुलता अन्य जीवप्रजातियों के विलुप्तिकरण की तरह मानवप्रजाति के विलोपन की संकेतक के रूप में मानव समाज को लेनी चाहिए। प्रकृति बार-बार चेतावनी दे रही है। मानवप्रजाति अगर नहीं सम्भली तो परमाणु बमों, नाइट्रोजन बमों और हाइड्रोजन बमों की ढेर पर बैठी ये दुनिया स्वयं निर्मित इन भयानक प्रदूषणों की वजह से कुछ सौ सालों में ही विलुप्त हो जायेगी, इसलिए हमें (समस्त मानव प्रजाति को) अभी भी सम्भल जाना चाहिए।
— निर्मल कुमार शर्मा