कहानी

वह कौन- भाग 1

छोटा बेटा नवीन अभी तक घर नहीं पहुंचा, नवीन की मां निशा का मन चिंतित है। रात के 11:00 बज गए, प्रतिदिन तो नवीन 10:00 बजे तक घर आ जाता है दुकान बंद करके। आज ऐसा कौन सा काम आ पड़ा कि इतनी देर हो गई। कोई अनिष्ट होने की आशंका से निशा का मन घबरा रहा है। समझ में नहीं आ रहा है कि जाकर दुकान में देखें या अपने पति नरेंद्र तथा बड़ा बेटा प्रवीण को फोन करके बता दें कि नवीन आज दुकान से घर नहीं आया। अपने दोस्तों के साथ कहीं चला तो नहीं गया। बहुत से दोस्त हैं उसके, दोस्तों की टोली मिल जाए तो कभी-कभी घर का रास्ता भूल जाता है। कई बार उसकी मां ने समझाया कि..” कहीं जाओ तो कम से कम एक बार घर में खबर दे दिया करो। पर.. नहीं, यह आजकल के लड़कों को घर की चिंता कहां रहती है?”

नरेंद्र और प्रवीण किसी काम से पड़ोस के गांव में गए हुए थे, कहा था आने में देर हो जाएगी। निशा घर के आंगन में इधर से उधर टहल रही थी। दिल जोर जोर से धड़क रहा था घबराहट से। अपने पति और बड़े बेटे के आने का इंतजार कर रही थी। दोनों आ जाए तो पता करें कि कहां गया नवीन। इतनी रात तक नतो कभी बाहर रहता नहीं, आज क्या हो गया? बार बार बुरे ख्याल आ रहे थे निशा के मन में।
इतने में प्रवीण और नरेंद्र की कार आकर घर के सामने रुकी तो निशा के जान में जान आई। जैसे ही दोनों बाहर निकले तो निशा दौड़कर उनके पास गई और हांफते हुए कहने लगी..” तुम दोनों ने कितनी देर कर दी। मैं चिंता में घुली जा रही हूं। नवीन अभी तक घर नहीं आया है, पता नहीं क्या बात है? रोज तो ऐसी देर नहीं करता। तुरंत जाकर देखो दुकान में क्या कर रहा है, या दुकान बंद करके कहीं गया है क्या? जल्दी खबर लो और मुझे बताओ।”

“इतनी क्यों घबरा रही हो मां? कहीं गया होगा दोस्तों के साथ। आपको तो पता है उसके बहुत सारे दोस्त हैं। और.. कभी-कभी बिना बताए चला भी जाता है।”.. प्रवीण ने अपनी मां को सांत्वना देते हुए कहा।
“जाता है पर इतनी देर भी नहीं करता। आ जाता है 11:00 बजे तक, अभी तो 12:00 बज रहे हैं। तुम दोनों जल्दी जाओ और ढूंढके लाओ उसे।”.. निशा ने फिर चिंता जताते हुए कहा।

नरेंद्र और प्रवीण दोनों ने जा कर देखा दुकान का दरवाजा बंद है और लाइट भी नहीं जल रही है। दोनों ने सोचा शायद दुकान बंद करके कहीं चला गया होगा नवीन। फिर उन दोनों को लगा कि एक बार अच्छे से देख लेना चाहिए। दोनों दुकान के पास गए तो देखा दुकान का दरवाजा बंद तो है, पर.. ताला नहीं लगा है, तो दोनों को किसी अनिष्ट की शंका हुई। ऐसे बिना ताला बंद किए तो कभी नवीन जाता नहीं है कहीं पर भी।

दरवाजे से बाहर आती हुई एक खून की धार दिखी दोनों को, तो दोनों में जल्दी-जल्दी दरवाजा खोला। दरवाजा खोला तो अंधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। प्रवीण ने मोबाइल की लाइट जला ली, तो.. देख कर दोनों के मुंह से चीख निकल गई..” नहीं… यह नहीं हो सकता। प्रवीण तो दहाड़े मार कर रोने लगा।..” ये किसने किया, ऐसे कैसे हो सकता है? किसने किया यह काम? मेरी भाई की इतनी दुर्दशा करने वाले को मैं छोडूंगा नहीं।”.. दोनों की जोर से चिल्लाहट सुनकर आसपास से लोग दौड़कर आ गए। सबकी आंखें फटी की फटी रह गई, वह हृदय विदारक दृश्य देखकर। किसी को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। नरेंद्र और प्रवीण को सांत्वना देने में लगे हुए थे लोग, पर… दोनों कहां शांत होने वाले थे ऐसे दृश्य को देखकर। दोनों जोर जोर से रोये जा रहे थे..” हाय.. नवीन यह क्या हो गया? यह कैसे हो गया? किसने की तेरी एसी दशा की?”

नवीन का मृत देह पढ़ा था दुकान के अंदर, खून से लथपथ। किसी ने गला चाकू से रेत दिया था। खून चारों ओर फैल चुका था। वह दृश्य देखा नहीं जाता, देखने वालों का दिल दहल जाएगा, इस भयानक दृश्य को देखकर। सत्रह,अट्ठारह साल उम्र थी उसकी। 12वीं कक्षा का विद्यार्थी था वह। बड़ा भाई जब दुकान में नहीं बैठता था तब वह जाकर दुकान में बैठता था। दवा की दुकान थी उन लोगों की। पूरे गांव में एक ही दवा की दुकान थी इसलिए इनका बिजनेस भी बहुत अच्छे से चल पड़ा था। जिसके कारण कई दुश्मन भी पैदा हो गए थे, तो कई दोस्त भी थे। आज बड़ा भाई तथा पापा किसी काम से बाहर गए हुए थे, तो दुकान में नवीन ही बैठा था।

भीड़ में से किसी ने पुलिस को सूचना दी कि गांव में एक दुकान है दवा की, जिसमें एक लड़के का खून हुआ है। थोड़ी देर में पुलिस आई उस जगह का मुआयना किया तो पुलिस को कोई सुराग हाथ ना लगा। खून करने वाला बड़ा शातिर निकला। उसने कोई सुराग नहीं छोड़ा था उस जगह पर। जिससे कि यह पता चले कि खून किसने किया है। सबसे पहले पुलिस ने नरेंद्र से पूछा..” तुम कहां पर थे और कब आए दुकान पर? कब आकर घटनास्थल पर यह घटना देखी?” तो नरेंद्र ने रोते रोते कहा..” मैं पड़ोस के गांव में गया था किसी काम से, अपने बड़े बेटे के साथ। तो रात को 11:00 बजे मेरी पत्नी ने मुझे फोन किया कि नवीन अभी तक घर नहीं पहुंचा है दुकान बंद करके। तुम जल्दी आ जाओ और देखो नवीन कहां गया है। वह नवीन को लेकर बहुत चिंतित थी इसलिए आते ही सबसे पहले अपने बड़े बेटे प्रवीण को लेकर मैं दुकान आया। आकर देखा दुकान बंद है और लाइट भी बंद है। मैं लौट कर जाने लगा परंतु न जाने क्यों पलट कर फिर दोबारा आया और आकर देखा दरवाजा बंद जरूर था मगर ताला नहीं लगा था। दरवाजा खोला तो अंदर का यह दृश्य हमारे सामने था। इसके आगे मैं कुछ नहीं जानता।”.. वह फिर बिलख बिलख के रोने लगा।

बगल में एक किराने की दुकान थी जिसका नाम मालिक था राम चरण। दरोगा जी ने राम चरण को बुलाया और उससे पूछताछ की..” तुमने किसी को दुकान में आते हुए देखा है दिन में या रात के समय।”
“संध्या के समय नवीन के दो दोस्त आए थे, उससे मिलने। बैठ के बातें कर रहे थे दोनों। दोनों बहुत देर बैठे उसके बाद जाते हुए देखा मैंने।”.. राम चरण ने कहा।
“उस समय नवीन क्या कर रहा था, जब दोनों दोस्त चले गए? तुमने कुछ देखा था?”.. दरोगा ने फिर पूछा।
“जी साहब नवीन अपनी दुकान में बैठा था और ग्राहक आ जा रहे थे। मैं भी आज 9:00 बजे दुकान बंद करके चला गया था।”.. राम चरण ने फिर जवाब दिया।
“ठीक है तुम जाओ, जरूरत पड़ेगी तो फिर पूछताछ करेंगे तुमसे।”.. दरोगा ने कहा।

दरोगा ने फिर प्रवीण की ओर मुखातिब हुआ और उससे पूछा..” तुम्हारा कोई ऐसा दोस्त है जिससे तुम्हारी दुश्मनी है? या तुम्हारे छोटे भाई से किसी की दुश्मनी है? सब खुल कर बताओ तो कुछ सुराग हाथ लगेगा!”
“दोस्त मेरे कई हैं और मेरे भाई के भी कई हैं। पर.. कौन दुश्मन है, और कौन नहीं यह बताना मुश्किल है। कुछ लोग है जो हमसे जलते हैं क्योंकि हमारा बिजनेस अच्छा चल पड़ा है।”.. आंखों में आंसू लिए प्रवीण ने कहा।

दरोगा ने रामचरण को अपने पास बुलाया और उससे पुनः पूछा..” रामचरण यह बताओ शाम को जो दोस्त आए थे नवीन के पास। उनको तुम पहचानते हो, उनका नाम जानते हो?”
“जी, सर एक ही गांव में रहते हैं, बचपन से देखा है। अच्छी तरह से जानते हैं, एक था सुरेश और दूसरा था निर्मल। तीनों एक ही कक्षा में पढ़ते हैं और तीनो में बचपन से ही बहुत दोस्ती है। इनकी दोस्ती तो पूरे गांव में मशहूर है।”.. रामचरण ने जवाब दिया।
“चलो हमारे साथ गाड़ी में बैठो, उनका मकान बताओ, कहां पर है। स्सालों को पकड़ते हैं, जवानी ज्यादा चढ़ी हुई है, पढ़ाई-लिखाई करनी नहीं है, मटरगश्ती करते रहना है।”.. इंस्पेक्टर ने ताव दिखाते हुए कहा।

दरोगा की गाड़ी जाकर सुरेश के घर के सामने रुकी। वह गाड़ी से उतरा और दरवाजा खटखटाया तो एक आदमी ने दरवाजा खोला। दरोगा को देखते ही वह सकपका गया, डरते हुए कहा..” नमस्ते साहब क्या बात है? इतनी रात को..!”
“हां रात को.. रात को ही आना पड़ा, घटना रात को घट गई तो रात को ही आना पड़ेगा ना। तुम्हारा बेटा सुरेश कहां है? जरा बुलाओ उसे।”.. दरोगा ने मूछों पर ताव देते हुए कहा।
“क्या बात हो गया साहब, हमारे सुरेश ने कोई गलती की है?”.. डरते डरते सुरेश के बापू ने बोला।
“अभी पता चल जाएगा क्या किया तुम्हारे बेटे ने।”.. दरोगा ने रौब दिखाते हुए कहा।

सुरेश आकर चुपचाप दरोगा के सामने सिर झुकाए खड़ा था। उसे पता ही नहीं था कि क्या हो गया? फिर भी वह डर रहा था कुछ अनिष्ट की आशंका से। दरोगा ने एक सिपाही को भेजा था निर्मल को बुलाने के लिए। थोड़ी देर के बाद निर्मल भी आकर खड़ा हो गया सिर झुका के।

“हां तो अब बताओ, तुम दोनों कल रात को नवीन की दुकान में क्या करने गए थे? और वहां से कब लौटे थे?”.. दरोगा ने सवाल किया।
“हम 7:00 बजे के करीब गए थे दुकान में और एक घंटा रुक के फिर वापस आ गए। ऐसे ही मिलने गए थे नवीन से क्योंकि रोज शाम को हम तीनों मिलकर खेलने जाते हैं । कल नवीन नहीं था इसलिए नवीन से मिलने चले गए थे।”..एक ने जवाब दिया।
“झूठ बोल रहे तुम लोग, लगाओ इन सालों को हथकड़ी और ले चलो इनको थाने। अच्छी मेहमान नवाजी करेंगे तो सब उगल देंगे।”.. दरोगा ने सिपाही को कड़कती आवाज में बोला।
“पर.. साहब, हमने क्या किया? हमें तो कुछ पता ही नहीं है क्या हो गया है? हमें पता तो चले कि हमने क्या किया है?”.. दोनों ने हाथ जोड़कर कहा।
“बहुत भोले बनते हो, तुम्हें पता नहीं है कि नवीन का खून हो गया कल रात को।”.. दरोगा ने आंखें दिखाते हुए कहा।
दोनों सुनकर भौचक्के रह गए, नवीन उनका प्यारा दोस्त था। दोनों के आंखों से आंसू छलक आए और रोते हुए कहा..” साहब नवीन हमारा बहुत अच्छा दोस्त है। हमने कुछ नहीं किया। हम जब आए थे तब नवीन दुकान में बैठा था, काफी ग्राहक थे, उसमें व्यस्त था। उसके बाद हमें कुछ भी नहीं मालूम, हम सीधा घर आ गए थे।”
दरोगा ने मूछों पर ताव देते हुए कहा..” थाने तो तुम्हें चलना ही पड़ेगा। थाने ले जाकर हम अपने तरीके से पूछेंगे तुम दोनों से, फिर सारी बातें सामने आ जाएगी।”

दरोगा अपनी मूछों पर ताव देते हुए अपनी गाड़ी की ओर चल पड़ा। हवलदार ने सुरेश और निर्मल को हथकड़ी लगाकर दरोगा का अनुसरण किया…!!

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]