प्रण
प्रण
चिर दग्ध दुखी वसुधा को ,
भय त्रस्त भ्रमित मानव को ,
अलौकिक सुख की आशा में ,
बाँधने का प्रण। है |
विश्रृंखलित पराजित मानवता को ,
जन मानस में व्याप्त विषमता को ,
सर्वथा दूर कर बल से परिपूर्ण कर ,
विजयनी बनाने का मेरा संकल्प है |
जड़यांत्रिकता के विरुद्ध
करके आवाज उच्च ,
आध्यात्मिकता के समरसजीवन व्यतीत कर ,
आनंद के शिखर तक जाने का प्रण है
नारी की महत्ता प्रतिष्ठा और पद को,
महिमा से मंडित विशाल आसान पर,
पुनः विराजित करने का ,
मेरा संकल्प है |
मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”
लखनऊ (यू. प)