संयोग पर संयोग-7
रविंदर भाई से मुलाकात
रविंदर भाई, एक जाने-पहचाने आध्यात्मिक व्यक्तित्व का नाम है, जो सभी के दोस्त हैं. उनसे मुलाकात होना भी एक अद्भुत संयोग है, जिसने हमारे आध्यात्मिकता के दीप को और भी प्रज्वलित कर दिया. उन पर अधिक बात करने से पहले उनके आज भेजे पोस्टर की बात.
रविंदर भाई रोज सुबह हमें अनगिनत पोस्टर भेजते हैं, जो अपने कलेवर में तो खूबसूरत होते ही हैं, उनमें लिखे अनमोल वचन भी बेशकीमती होते हैं यानी सूरत के साथ सीरत भी कमाल! आपको यह जानकर आश्चर्य होगा, कि हर सदाबहार कैलेंडर के 31 अनमोल वचनों में से बहुत-से अनमोल वचन रविंदर भाई के ही भेजे हुए होते हैं. आज रविंदर भाई ने अनमोल वचन भेजा-
”ऐ दोस्त,
तुम पे लिखना कहां से शुरु करूं?
अदा से करूं? या हया से करूं?
तुम्हारी दोस्ती इतनी खूबसूरत है,
कि समझ नहीं आता,
तारीफ़ जुबां से करूं या दुआ से करूं?”
यह अनमोल वचन भले ही रविंदर भाई ने हमारे पास भेजा हो, यह उन पर भी सटीक साबित होता है. दोस्ती की इससे खूबसूरत तस्वीर और कहां देखने को मिलेगी?
रविंदर भाई का का व्यक्तित्व बहुआयामी हैं, लेकिन यहां हम उनके 3 रूपों की चर्चा ही करेंगे- उत्कृष्ट ब्लॉगर रूप और पाठक-कामेंटेटर तो वे हैं ही, लेकिन पहले चर्चा रविंदर भाई के एक नए रूप की.
रविंदर भाई अक्सर कर्मरत रहने, कर्मयोगी बनने, निरंतर सीखते रहने संबंधी अनमोल वचन भेजते रहते हैं. वे स्वयं भी निरंतर कर्मयोगी की तरह कुछ-न-कुछ अच्छा व नया करते-सीखते रहते हैं. आजकल वे पोस्टर बनाने के अभ्यास में लगे हुए हैं और अनमोल वचनों के अनगिनत पोस्टर बना-भेजकर अपने मित्रों-संबंधियों को आध्यात्मिक बने रहने की चेतना जागृत करने के सद्प्रयास में लगे रहते हैं.
संवेदनशील-आध्यात्मिक रविंदर भाई दो साल पहले इन्हीं दिनों हमसे जुड़े थे, लेकिन ऐसा लगता है, वे मुद्दत से हमारे संपर्क में हैं. आइए पहले उनके ब्लॉगर रूप को देखते हैं.
रविंदर भाई का सबसे पहला ब्लॉग जय विजय में था- ”क्या हमें आजादी मिल गयी ?”, जो January 30, 2017 को आया. इसमें गुलामी की मानसिकता से मुक्त होने की कामना की गई है.
”कभी देखा है ?” उनकी बहुत सुंदर कविता है. इसके बाद रविंदर भाई रुके नहीं. वे बीच-बीच में किसी कारणवश लंबी ब्रेक अवश्य ले लेते हैं, लेकिन अवसर मिलते ही वे पुनः ब्लॉग जगत में सक्रिय हो जाते हैं और अत्यंत बेबाकी से अपने विचार रखते हैं.
उनकी जय विजय की साइट है-
https://jayvijay.co/author/ravindersudan/
अपना ब्लॉग पर ब्लॉगर रूप में रविंदर भाई सबसे पहले हमारे ब्लॉग- ”मेरा प्रथम सृजन: रविंदर सूदन” में दिखे. इसमें रविंदर भाई की रचना- ”अच्छा इंसान” प्रकाशित हुई. इस रचना का सृजन कैसे हुआ, आप जानना चाहते हैं? चलिए, बताए देते हैं.
रविंदर भाई से हमारी मुलाकात हमारे ब्लॉग पर ही हुई है. रविंदर भाई के कामेंट्स से हमें लगा, कि ये कुछ क्या, बहुत कुछ लिख सकते हैं. इनके कामेंट्स बोलते हैं-
1.ये जिज्ञासु प्रवृत्ति के हैं.
2. इन में ज्ञान को सही जगह पर उद्धरित करने का हुनर है.
3.ये बहुत अच्छा लिख सकते हैं.
4.ये ज्ञान को बराबर वर्द्धित करने और बांटने में विश्वास रखते हैं.
5.इनके विचार सुलझे हुए और परिपक्व हैं.
6.इनके पास नए-नए आइडियाज़ हैं
इस बारे में हमने रविंदर भाई को बस एक मेल लिखी, तुरंत जवाब आया-
”लीजिये मैंने भी ठान लिया कि थोड़ा बहुत लिखूं. शीघ्र ही आपको कुछ लिख कर भेजूंगा.”
थोड़ी देर बाद ही इनकी रचना भी आ गई, जिसका भावपक्ष तो बहुत सबल है ही, विषय के अनुरूप इन्होंने अपनी भाषा को सरल रखा है, इसलिए कलापक्ष भी लाजवाब हो गया है. इस रचना के जवाब में जो प्रतिक्रियाएं आईं, उनमें एक ब्लॉगर भाई ने लिखा-
”लीला बहन ऐसे लोग तो मन में डाह पैदा करते हैं , लोग सोचते हैं, कि लो एक प्रतिस्पर्धी और आ गया, लेकिन सुखद है कि अभी दुनिया में लीला बहिनों की कमी नहीं है.”
रविंदर भाई इससे घबराए नहीं और उन्होंने अपने को और सुदृढ़ कर लिया. जय विजय पर अपनी कलम को मांझकर वे March 16, 2017 को नेकचंद जी की नेकी के साथ ”गलती का एहसास” रचना के साथ अपना ब्लॉग पर आए और आते ही धूम मचा दी.
”अपना ब्लॉग पर बहुत खूबसूरत और जागरुकता बढ़ाने वाले ब्लॉग के साथ आपका हार्दिक स्वागत है. आपने सिर्फ़ विवेक के विवेक को ही नहीं, सभी बच्चों-युवाओं के विवेक को जगा दिया है. इतनी खूबसूरत सीख एक नेक और खूबसूरत दिल वाला ही दे सकता है. बहुत सरल भाषा में सहज शैली में आपने खूबसूरत संदेश दे दिया है.” हमने लिखा था.
फिर तो उन्होंने ”दुःखी रहने के उपाय” भी बताए. इस ब्लॉग को भी आप नहीं भूल पाए होंगे. एक मंझे हुए लेखक की तरह हंसते-खिलखिलाते व्यंग्यमय शैली में बहुत सुंदर लेख लिखा था रविंदर भाई ने.
”इंसान कहीं का” का राग भी छेड़ा. इस आलेख में रविंदर भाई ने इंसान की इंसानियत को ललकारा है.
इसके बाद शुरु हुई उनकी आत्मकथा ”उसकी कहानी”. इस आत्मकथा के लगातार 6 भाग छपे और एक-एक भाग अपने में संवेदनशीलता-आध्यात्मिकता समेटे, एकदम अनूठा. वे इस आत्मकथा को छपवाकर बांटना चाहते थे. आशा है, उन्होंने ऐसा किया भी होगा. हमारे पास तो उनके ब्लॉग की साइट है, हम तो कभी भी, कितनी भी बार उसकी कहानी पढ़ सकते हैं.
रविंदर भाई की अपना ब्लॉग की साइट है-
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/author/ravisudanyahoo-com/
अब उनके पाठक-कामेंटेटर रूप से रू-ब-रू होते हैं. वे बहुत अच्छे पाठक-कामेंटेटर तो हैं ही, यह आप जानते हैं. उनके पाठक-कामेंटेटर रूप की कुछ विशेषताएं हम ऊपर बता चुके हैं. कुछ अन्य विशेषताएं हैं-
1.वे अपनी प्रतिक्रियाएं काव्यमय देते हैं.
2.बात-बात में चुटकुले ऐसे फिट कर देते हैं, कि मजा आ जाता है.
3.संबंधित प्रसंग भी बखूबी लिखते हैं.
4.मुहावरों-कहावतों का सटीक प्रयोग करते हैं.
अन्य अनेक पाठक-कामेंटेटर्स की तरह रविंदर भाई ने भी हमें बहुत-से ब्लॉग्स लिखने के लिए प्रेरित किया है. एक साल पहले उन्होंने एक समाचार भेजा-
”एक पैर से एवरेस्ट फतह करने वाली महिला की कहानी”
इस पर हमारा ब्लॉग बना- ”हमारी हिम्मत तो देखो!”
यह सिलसिला अभी भी जारी है. अभी भी वे कमाल के किस्से भेज रहे हैं.
एक दिन सुबह-सुबह हमारे एक पाठक रविंदर सूदन की मेल आई- ”आदरणीय दीदी, अपना ब्लॉग पर कामेंट लिख नहीं पा रहे हैं. लिखते हैं तो आता नहीं है और दुबारा लिखना मुश्किल होता है. क्या करें?”
हम हमेशा से कहते आए हैं, कि हम तकनीक में जीरो हैं, अब भी ऐसा ही है. हमने कुछ शोध किया, कुछ बेटे से ऑन लाइन सीखा और रविंदर भाई की इस समस्या पर ब्लॉग बना-
Control we (V)
यह ब्लॉग हमारे लिए भी बहुत उपयोगी रहा. आज भी हम इस ब्लॉग को बार-बार पढ़कर कुछ नया सीखते हैं. इस अत्यंत उपयोगी ब्लॉग पर रविंदर भाई की चुटकुलों से सजी प्रतिक्रिया भी मजेदार है-
”एक जज मुजरिम से : तुम पर इल्जाम है, कि तुमने अपनी पत्नी को पूरे कंट्रोल में रखा है.
मुजरिम जी असल में बात यह है…
जज: वजह नहीं पूछी, बताओ ऐसा कर कैसे लेते हो? मैं भी जानना चाहता हूं.”
”एक व्यक्ति एक साधु की कुटिया में गया जहाँ सात साधु सात चटाई बिछा कर बैठे थे.
व्यक्ति : महाराज बीवी कंट्रोल में नहीं है तंग आ गया हूं क्या करूं?
साधु: दूसरे साधु से चलो एक और चटाई बिछा दो.”
फिर सदाबहार काव्यालय-1
आदरणीय बहन जी, सुदर्शन जी का कथन है की कभी दरख़्तों के साये में बैठ के देख, न हो जाये इश्क दरख़्तों से तो मेरी हस्ती मिटा देना. भौतिक शास्त्र प्रोफेसर जगदीशचंद्र बसु अपनी खोज देर से जमा करवाने के कारण नोबेल पुरस्कार से वंचित रह गये, उसी खोज के लिये किसी अन्य को पुरस्कार मिल गया. जब निराश होकर वो बगीचे में बैठे, तो बगीचे के पेड़ पौधों ने उनसे बात शुरु कर दी क्यों निराश होते हो? जगदीशचन्द्र चकित रह गये, उस दिन से उन्होंने वनस्पतियों पर रिसर्च शुरु की ओर वनस्पतियों के बोलने के कारण भौतिक का प्रोफेसर वनस्पति का प्रोफेसर हो गया, जिसने दुनिया को बताया कि इनमें भी इंसानों जैसी भावनाएं होती हैं. उन्हें वनस्पति शास्त्र में नोबेल पुरस्कार मिला. सुदर्शन जी की बात सही है उनकी हस्ती मिटाने की नौबत नहीं आयेगी.
सौम्यता (लघुकथा)-
आदरणीय बहन जी, रिश्तों में किसने क्या दिया का महत्व नहीं होता, किसने अपना दिल खोल के रख दिया, किसने मलहम लगाया, अधिक महत्वपूर्ण है. कीमती बात बताने के लिये धन्यवाद.
उत्साह के फूल-
आदरणीय बहन जी, आप जैसे जोहरी ने कीमती माणिक खोजे हैं, पर सुदर्शन जी जैसा कोहिनूर ढूंढ कर बहुत बड़ा उपकार किया है.
संयोग पर संयोग-6
आदरणीय बहन जी. प्रकाश मौसम दो शब्दों में पूरी शख्सियत समा गयी है. प्रकाश का प्रकाश बताकर उनके मौसम जैसे मिजाज बताकर पाठकों पर फिर उपकार किया है.
एक से एक संयोग बन रहे हैं
लीला जी के ब्लॉग कम पड़ रहे हैं,
वक़्त अभी क्या-क्या बतायेगा,
संयोगों की श्रंखला को पढ़ रहे है.
खामोशी का राज (लघुकथा)
आदरणीय बहन जी,
कभी खामोशी भी बहुत कुछ कह जाती है,
किसी की खामोशी आँसुओं में बह जाती है,
खामोश देखकर कुछ अंदाज ना लगाना,
जलने के बाद राख ही रह जाती है.
पर आपकी कहानी के पात्र की खामोशी तो खुशनुमा सरप्राइज़ देने के लिये रखी गयी खामोशी थी जिसने सबको सरप्राइज़ कर दिया.
रविंदर भाई के जन्मदिन 3 मई को उन पर एक ब्लॉग आया था, जिसमें आपको उन पर लिखी बहुत-सी जानकारी मिलेगी-
संवेदनशील-आध्यात्मिक रविंदर भाई: जन्मदिन की बधाई
प्रिय पाठकगण, हम यह जानते हैं, कि रविंदर भाई आपके ब्लॉग्स पर भी आते हैं. आप कामेंट्स में उनकी किसी विशेषता को बताना चाहें या किसी प्रतिक्रिया विशेष का उल्लेख करना चाहें, तो आपका हार्दिक स्वागत है.
चलते-चलते
प्रभु-प्रेम की प्रकृति-प्रेम भी रविंदर भाई की खासियत है. चिड़ियाएं उन्हें बहुत अच्छी लगती हैं. चिड़ियाओं वाले गूड मॉर्निंग और अनमोल वचनों वाले पोस्टर उनको बहुत अच्छे लगते हैं. आध्यात्मिक पोस्टर्स के वे शैदाई हैं.
प्रिय ब्लॉगर रविंदर भाई जी, आपके महान व्यक्तित्व का कैनवास इतना विशाल है, कि उसको एक ब्लॉग में समेटना हमारे लिए बहुत मुश्किल है, फिर भे हमने यथासंभव प्रयास किया है. आशा है आप थोड़े लिखे को अधिक मानकर हमें कृतार्थ करेंगे.