यात्रा वृत्तान्त

एक अविस्मरणीय यात्रा

बात तीन साल पहले की है, पर.. ऐसा लगता है जैसे कल ही की बात है। भुलाए नहीं भूलती, मेरे मानस पटल पर उस यात्रा का चित्र ऐसे अंकित है, जिसे सोच कर केवल मन को ही नहीं, पूरा शरीर को रोमांचित कर जाता है। जीवन में पहली बार उस दृश्य का साक्षात दर्शन किया था। पहले तो ऐसा दृश्य हम टीवी चैनल पर देखा करते थे। कभी सोचा ही नहीं था अपनी आंखों से यह दृश्य देखने का मुझे सौभाग्य प्राप्त होगा।

बात अमेरिका के मैसेचूसैटस स्टेट के एक प्रायद्वीप की है, जिसका नाम है केपकार्ड। तीन दिशाओं से अटलांटिक महासागर से घिरा हुआ एक छोटा सा लैंड है। यह एक प्रसिद्ध टूरिस्ट प्लेस है। विश्व भर से टूरिस्ट वहां पर मई से लेकर अगस्त के महीने तक व्हेल वाचिंग के लिए जाते हैं।

वहीं से क्रूज जहाज में बैठकर अटलांटिक महासागर के अंदर प्रवेश किया था हम लोगों ने। मेरे साथ मेरा बेटा, बहु और मेरी बेटी हम तीन थे, उस रोमांचकारी दृश्य का आनंद लेने के लिए। क्रूज आगे बढ़ रहा था लहरों के बीच में से होकर। दूर दूर तक फैली नीले रंग की अथाह जल राशि के अलावा और कुछ नजर नहीं आ रहा था। लहरों में हिलोरें खाते हुए हम आगे बढ़ रहे थे। हम करीब 50 किलोमीटर भीतर पहुंच गए थे अटलांटिक महासागर के। और गाइड बोलते जा रहा था कि हम अब उस जगह की ओर जा रहे हैं जहां से आपको ‘हम्प बैक ह्वेल’ चारों ओर नजर आएंगे। समुद्री हवा में शीतलता थी क्योंकि उस समय वहां का मौसम बहुत ही मन लुभावन होता है। गाइड बोलते जा रहा था, “जहां आपको सफेद चिड़ियों का झुंड दिखे तो आप समझ जाना वहां पर कोई व्हेल है क्योंकि इन पक्षियों के माध्यम से वे अपने शरीर की सफाई करवाते हैं। उनके शरीर में चिपके हुए कीड़े मकोड़े खाने के लिए चिड़ियों का झुंड आसपास मंडराता हुआ दिखता है।” कुछ समय पश्चात हमने देखा तीन चार जगहों पर ऐसे चिड़ियों का झुंड उड़ रहा था, तो हम भी सावधान हो गए कि अभी ह्वेल दिखेगा हमें। और सचमुच वही हुआ, पानी के अंदर से एक विशालकाय ह्वेल ने फव्वारा छोड़ता हुआ शरीर को बाहर निकाला। और उसी क्षण गाइड बोल पड़ा….. “यह हम्प बैक व्हेल 45 फीट लंबा और 45 टन वजनी होता है लगभग। ये ह्वेल्स ठंड के 6 महीने प्रजनन के लिए तैयार होते हैं और उस समय इन्हें गर्म जगह की जरूरत होती है इसीलिए वे कैरेबियन आईलैंड के पानी में रहते हैं। फिर वे फरवरी महीने से अपनी यात्रा शुरू करके उत्तरी अटलांटिक महासागर के इस भाग में आ जाते हैं। ये एक माइग्रेशन में तकरीबन 5000 किलोमीटर की यात्रा करते हैं। और साल में दो बार माइग्रेट करते हैं। यहां 6 महीने छोटी मछलियों एवं छोटे-छोटे कीड़े मकोड़ों को खाकर अपने अंदर चर्बी जमा करते हैं। दिन में लगभग 2 टन खाते हैं, इस तरह वे प्रजनन के लिए तैयार होते हैं।” यह सुनकर हमारी आंखें फटी की फटी रह गई। जितने लोग क्रूस पर थे सब की जिज्ञासा और बढ़ गई थी।
उस विशालकाय ह्वेल के सिर को देखकर सब लोग जोर जोर से शोर करने लगे। एक डूबता तो दूसरा कहीं से निकल पड़ता, दूसरा डूबता तो तीसरा कहीं से निकल पड़ता, तीसरा डूबता तो चौथा कहीं से निकल पड़ता, इस तरह से लगातार चारों ओर ह्वेल ही ह्वेल दिखाई दे रहे थे। ह्वेलस ने हमारे क्रूज को चारों ओर से ऐसे घेर लिये थे जैसे सेना दुश्मनों को घेर लेती है। एक बार तो ऐसा लग रहा था जैसे हमारे क्रूज को पलट देंगे और हम सब महासागर के आगोश में समा जाएंगे..! सबके मन को आनंदानुभूति के साथ डर की एक काली छाया छू रही थी। फिर वे पानी छोड़ कर सिर अंदर ले गये और पूंछ बाहर निकाली और पानी मैं छपाक, छपाक पूंछ मारने लगे। वह दृश्य भुलाए नहीं भूलता, क्या दृश्य था वह। लोग बातें कर रहे थे कि इस तरह वे अपनी पूंछ की सफाई करते हैं। कुछ देर पश्चात देखा एक जगह पर कई ह्वेल इकट्ठा हो गए और वे अपना आधा शरीर पानी के ऊपर निकाल कर खेल रहे थे, तो ऐसा लग रहा था जैसे वे मिलजुलकर नृत्य करके आपस में मनोरंजन कर रहे हैं। यह इतना मनमोहक था कि याद करते ही रोम-रोम सिहर उठता है रोमांच से। पानी पर पूंछ मारना और मुंह से फव्वारा छोड़ना, उनका यह खेल करीब 2 घंटे तक चलता रहा। यह दृश्य करीब से देखना कितना चित्ताकर्षक हो सकता है यह मैं शब्दों में अभिव्यक्त नहीं कर सकती। एक सुखद और मनोहर अनुभूति लेकर हम लौट पड़े,पर.. मन में खुशी की लहरें ऐसी उठ रही थी जैसे समुद्र की लहरें उठती है।

बच्चों के साथ मेरी यह पहली महासागर की यात्रा इतनी सुखद अनुभूति है कि जीवन पर्यंत मेरे मानस पटल पर अंकित रहेगी। मैं अपने बच्चों का धन्यवाद करती हूं जिन्होंने मुझे अपने जीवन में यह यात्रा करने का अवसर प्रदान किया है…!!!

पूर्णतः मौलिक – ज्योत्सना पॉल

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- paul.jyotsna@gmail.com