दिलखुश जुगलबंदी- 1
कामना है यही
न हमें मंज़िल की तिश्नगी थी, न तलाश
हमें तो राह के कांटों से ही राहत मिल गई.
क्या करे कोई ज़माना ही ख़राब है
राह के कांटे ही राहत की आवाज़ हैं
अब तो दिन सेह के भी फिर गए हैं
सेह से लोग दोस्ती करने लग गए हैं.
जमाने को दोष क्यों देते हो दोस्त
हमने ही तो कैक्टस से भी दोस्ती निभाई है
तुम अपने गुलाबों की तारीफ करो या सेह से दोस्ती की
कैक्टस से दोस्ती करने वालों के कैक्टस पर भी बहार आई है.
कांटे ही जब खूबसूरत लगने लगें
तो फूल ख़ुद ही मुरझाने हैं लगे
कभी जिनको समझा था बेज़ार
आज उन पर ही खिली है बहार.
कांटे भले ही खूबसूरत लगने लगें
फूल इसलिए नहीं मुरझाते, वे हैं उदार
खिलकर मुरझाना, मुरझाकर पुनः खिलना
इनकी आदत में है शुमार.
फूल कोमल हैं
कुछ पलते हैं
कांटों के साए में
हां इतना ज़रूर है
कांटों को
ढक लेते हैं
अपने आंचल में.
फूल भले ही कांटों को ढक लेते हैं
अपने आंचल के साये में
कांटे भी करते हैं फूलों की कोमलता की सुरक्षा,
रखकर उनको अपने सरमाये में.
शायद इसलिए
कभी घायल करते नहीं
कांटे अपनी ही डाल
पर खिले
फूलों को.
कांटे अपनी ही डाल पर खिले फूलों को
कभी घायल नहीं करते हैं
वे तो उनको घायल करते हैं,
जो फूलों को यों ही तोड़ने की ज़ुर्रत करते हैं.
जब कोई साफ दिल वाला
फूल पाने की इच्छा जताता है
तो कमाल ही हो जाता है
कांटा भी
सिर अपना झुका लेता है
और फ़ूल को विदा
होने देता है.
उस समय कांटा मानो एक पिता होता है
जो अच्छा कुल-शील देखकर
अपनी कन्या का कन्यादान करता है
और कन्या को विदा कर खुश होता है.
सभी कन्याओं को
अच्छा वर मिले
पिता के रूप में
कामना है यही,
कामना है यही,
कामना है यही.
फेसबुक पर सुदर्शन खन्ना और लीला तिवानी की काव्यमय जुगलबंदी
कभी-कभी ऐसा संयोग होता है, कि फेसबुक पर हमारे पाठक-कामेंटेटर्स आमने-सामने होते हैं. ऐसा ही संयोग कल 13 दिसंबर, 2018 को हुआ. हम सुबह अपनी पोस्ट को फेसबुक पर अपलोड करते समय अपने सदाबहार कैलेंडर ऐप से दो अनमोल वचन भी पब्लिश करते हैं. सुदर्शन खन्ना जी कभी-कभी उन पर शायरी करते हैं. संयोगवश कल भी सुदर्शन खन्ना जिस समय फेसबुक पर शायरी कर रहे थे, हम भी लाइन पर थे और शायरी की महफिल जमती रही और हमारी इस काव्यमय जुगलबंदी ने ”दिलखुश जुगलबंदी-1” का रूप ले लिया. आप चाहें तो इसे दिलकश जुगलबंदी या और कोई नाम भी दे सकते हैं, बहरहाल हमने इसे ”दिलखुश जुगलबंदी” से संबोधित किया है, शेष आपकी राय ही कुछ कह सकेगी.
लीला बहन , आप की और सुदर्शन खाना जी की दिलखुश जुगलबन्दी बहुत अछि लगी .
उस समय कांटा मानो एक पिता होता है
जो अच्छा कुल-शील देखकर
अपनी कन्या का कन्यादान करता है
और कन्या को विदा कर खुश होता है.
सभी कन्याओं को
अच्छा वर मिले
पिता के रूप में
कामना है यही,
कामना है यही,
कामना है यही.
वाह किया जुगलबन्दी है . पढ़ कर बहुत अच्छा लगा .
दिलखुश जुगलबंदी- 1 पर सुदर्शन खन्ना का जवाब-
आदरणीय दीदी, सादर प्रणाम. आदरणीय गुरमैल जी भी दिलखुश जुगलबंदी का आनन्द लेने से अपने को रोक नहीं सके और उन्होनें खूब आनन्द उठाया. उनका आनन्द उठाना ही स्नेहिल आशीर्वाद है. उन्हें हार्दिक नमन.