लघुकथा – कैलेंडर
दरवाजे की घंटी बजने पर उमेश ने दरवाजा खोला। दरवाजा खोलते ही उमेश ने देखा उसका बडा बेटा शाम को अपनी नौकरी से वापस आ गया है। उमेश ने अंदर जाकर बेटे को चाय बना कर दी।उमेश की पत्नी का देहांत लगभग 20 वर्ष पूर्व हो गया था।
उस समय उसके दोनों बच्चे छोटे थे। आज उमेश बहुत खुश है क्योंकि उसके बच्चे आज बहुत अच्छी जॉब पर बड़ी-बड़ी कंपनियो में लग गए हैं और अब उसकी जीवन भर की मेहनत सफल हो गई है।
अपनी युवावस्था में उमेश एक कंपनी में मजदूर का काम किया करता था और बड़ी मेहनत से दोनों बच्चों को पढ़ाता था। पत्नी के देहांत के बाद तो उसके लिए बड़ा ही मुश्किल हो गया था। लेकिन जैसे तैसे उसने अपने दोनों बच्चों को बड़ी मेहनत और ईमानदारी से पढ़ाया। इतने वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद आज वो काफी अच्छा महसूस कर रहा था।
छोटा बेटा भी कुछ समय बाद ऑफिस से आ गया। तीनों बाप बेटे साथ बैठकर अब खाना खाने की तैयारी कर रहे थे कि अचानक दीवार पर टंगे कैलेंडर पर उमेश की नजर गई ।
कैलेंडर को देखकर उमेश का मन परेशान सा हो गया और उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि यह तो वर्ष 2018 का दिसंबर माह है,फिर ये कैलेंडर 2028 का क्यों दिखाई दे रहा है। उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि 2028 का दिसंबर माह कैलेंडर क्यों दिखा रहा है।
अभी उमेश इसी असमंजस में था कि अचानक एक मासूम सी आवाज उसके कानों में पड़ी, पापा उठ जाओ सुबह हो गई हमें स्कूल के लिए तैयार कर दो।
अचानक बेटे के उठाने पर उमेश की नींद खुल गयी और उमेश का सपना टूट गया। अक्सर ऐसे ही छोटे छोटे सपने हर व्यक्ति अपने जीवन में हमेशा देखता है और कल्पना करता है कि शायद वह कभी ना कभी पूरे होंगे।
उमेश के समान कभी ना कभी हर व्यक्ति को इस तरीके के सपने आते ही है। जब वो अपने भविष्य को लेकर कुछ ना कुछ ऐसा देखते है।
खैर कोई नहीं उमेश एक बार फिर हंसते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ा और दोनों बच्चों को तैयार करके भविष्य की अच्छी कल्पना के साथ उन्हें स्कूल के लिए भेजकर फिर अपने ऑफिस के लिए चल पड़ा।