लघुकथा

लघुकथा – जब जागो तभी सवेरा

आज मैंने 100 मीटर की दूरी 42.20 सेकंड में दौड़कर नया गिनेस वर्ल्ड रेकॉर्ड बनाया है. आप मेरी खुशी का अंदाज़ा लगा ही सकते होंगे. मैं भी बहुत खुश हूं और मुझे 3 साल पहले के उस दिन की बात याद आ रही है, जब मैं भारत में थी.
उस दिन भी मैं रोज की तरह पार्क में जॉगिंग कर रही थी, कि एक आंटी ने ‘गुड मॉर्निंग” कहकर मुझसे बात करनी चाही.
”आपको बहुत अच्छी तरह जॉगिंग करते देख मुझे बहुत खुशी हो रही है.”
”जी, शुक्रिया, बस ये मेरा शौक है, अब तक तो घर गृहस्थी में व्यस्त थी, अब दोनों बच्चे कॉलेज के होस्टल में पढ़ रहे हैं, सो अपने लिए कुछ समय निकाल पाती हूं.”
”आप इतना तेज़ दौड़ पाती हैं, आपने कभी किसी स्पोर्टस एसोसिएशन से जुड़ने की कोशिश नहीं की?” आंटी ने पूछा था.
”बस, अपने लिए समय ही नहीं निकाल पाई. अब तो देर हो चुकी है.”
”नेक काम के लिए कभी देर-सवेर नहीं होती है. ऐसे में तो जब जागो तभी सवेरा होता है.” आंटी ने मुझे जगाने की कोशिश की थी.
”अब तो मुश्किल लग रहा है.” इसे मेरा दुराग्रह ही समझिए.
”ऐसा है लता जी, मैं एक ब्लॉगर हूं और अक्सर प्रेरणा और प्रोत्साहन देने वाले ब्लॉग्स ही लिखती हूं. आपको हमारी बात पर ज़रा भी विश्वास हो, तो घर जाकर हमारा ‘अभी मैंने शुरुआत ही की है’ ब्लॉग पढ़कर देखिएगा. शायद आपको भी प्रेरणा मिल सके.” आंटी से मेरी यह पहली और आखिरी मुलाकात थी.
मैंने ब्लॉग पढ़ा था और 105 वर्ष की आयु में दौड़कर नया गिनेस वर्ल्ड रेकॉर्ड बनाने वाले जापान के ‘गोल्डन बूट’ के नाम से प्रसिद्ध निवासी हिदेकिची मियाजाकी के कथन से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी- उन्होंने कहा था- ”अभी मैंने शुरुआत ही की है.”
मुझे लगा, कि उस शख्स ने तो 90 बसंत पार करने के बाद दौड़ना शुरु किया था, मैं तो अभी 50 बसंत भी नहीं देख पाई हूं. अभी देर नहीं हुई है. कुछ समय बाद ही हमारी पोस्टिंग इटली में हो गई थी. मेरा मन प्रेरणा से सराबोर था ही, इटली में मुझे ऐसी संगति भी मिल गई. मैंने प्रयत्न जारी रखा. उसी का सुपरिणाम है, कि दौड़ में आज का यह नया गिनेस वर्ल्ड रेकॉर्ड मेरे नाम दर्ज हो गया है.”
आंटी ने मुझे दुराग्रह से मुक्ति दिलाई थी और मुक्ति से जीत से जीत हासिल हो गई. देर से ही सही, मेरे लिए सवेरा हो चुका था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “लघुकथा – जब जागो तभी सवेरा

  • लीला तिवानी

    यह सच है, कि कोई भी अच्छा काम शुरु करने के लिए कभी देर नहीं होती. लता ने ब्लॉग के नायक हिदेकिची मियाजाकी से प्रेरणा ली. हमारे समक्ष ऐसे अनेक उदाहरण आज भी मौजूद हैं. हमारे महान लेखक गुरमैल भाई, ग़ज़ब की चित्रकार कैलाश भटनागर आदि ऐसे ही जीवंत उदाहरण हैं. कथा की नायिका लता के साथ ऐसे अनेक महानुभावों को हमारी कोटिशः बधाइयां.

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