लघुकथा

लघुकथा – सालगिरह

आज सुनंदा-सुरेश के प्रपोज डे की सालगिरह थी और उनके बेटे सुमित की शादी की पहली सालगिरह भी. मेहमानों के लिए लंच की तैयारी करते-करते सुनंदा को पिछले साल की बातें याद आ रही थीं. तब उसने सपने में भी नहीं सोचा था, कि 3 दिन बाद सुमित की शादी भी हो जाएगी.

”सुमित बेटा, बाजार से जरा हरा धनिया तो ले आ.”

‘ममी, अब मैं धनिया लेने भी जाऊंगा क्या?” हमेशा की तरह उसकी ना नुकुर बरकरार थी.

”बेटा, नाना जी को रायते में धनिया न दिखे, तो उन्हें रायता पसंद नहीं आता, मैंने अभी देखा, धनिया खत्म हो गया है.”

”अच्छा लाता हूं. 30 साल पहले आपका प्रपोज डे था, सो उसका जश्न मनाने नाना-नानी तो आएंगे ही न!”

सुमित गया तो अकेला था, पर आया अकेला नहीं. अपने दिल के बदले किसी का दिल भी उसके साथ था. असल में उसने सब्जी के ठेले के पास पेड़ पर एक सादी-सी सूचना देखी- ”यहां आसपास चोर-लुटेरे होते हैं, कृपया पर्स आदि अपनी कीमती चीजें संभालकर रखें.”

कीमती चीजों में दिल को शुमार नहीं किया गया था और सुमित उसी को खो बैठा था.

दूसरे दिन उसी समय सुमित ने खुद पूछा- ”ममी, आज सब्जीवाले से कुछ लाना है?”

”नहीं बेटा.” ममी का जवाब था. सुमित तो- ”अच्छा, मैं थोड़ी देर में आता हूं.” कहकर चला गया था, पर कभी ऐसे बाहर न निकलने वाले सुमित के इस परिवर्तन से ममी हैरान अवश्य थीं.

आज सुगंधा के दर्शन-दीदार के साथ सुमित की उससे बात भी हो गई थी. उसका नाम पता लगने के साथ वाट्सऐप भी एक्सचेंज हो गया था.

अगले दिन फिर उसी समय सुमित को बाहर जाते देख ममी को कुछ आशंका हुई. उसके बाहर निकलने के साथ-साथ ममी भी चुपके से उसके पीछे गई. ठीक प्रपोज डे के दिन सुमित को किसी सुंदर-सी लड़की को प्रपोज़ करते देखा, तो चुपके से उनकी फोटो भी खींच ली.

उसके बाद ममी का चेहरा तो खिला-खिला-सा लग रहा था. सुमित की हालत भी कुछ अजीब-सी थी. उसने सुगंधा को मैसेज भेजा था-

”फिजा में महकती शाम हो तुम, प्यार में झलकता जाम हो तुम.”

रात को खाना खाने के बाद पापा ने ही बात छेड़ी थी- ”सुमित. शादी के बारे में तुम्हारे क्या विचार हैं?”

”शादी! किसकी शादी?” सुमित ने कहा तो पापा ने चहककर कहा- ”मेरी.” और फिर उसे फोटो दिखाते हुए कहा- ”देख ये लड़की तुझे पसंद है?”

अपनी फोटो देख सुमित सकपका गया. ”पापा, ये फोटो आपको कहां से मिली?”

”कहीं से भी मिली हो, तुम अपना इरादा बताओ.”

”पापा, अब मैं क्या बताऊं?” इतना ही कह पाया सुमित.

”क्या नाम है इसका? और हां, इसके पापा का फोन नं. दिलवा दे, तो उनसे बात करूं. कल ही शादी हो जाए, तो तुम आराम से वैलेंटाइन डे को हनीमून पर जा सकोगे.”

फिर पलक झपकते ही सब कुछ हो गया था. आज सुनंदा के माता-पिता के साथ सुगंधा के माता-पिता भी तो आने थे न! दोनों की सालगिरह जो थी.

परिवार में खुशियों का सागर लहरा रहा था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “लघुकथा – सालगिरह

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लीला बहन , ऐसा होने लगे तो कोई प्राब्लम खड़ी ही नहीं होगी . बहुत अछि लगु कथा .

  • लीला तिवानी

    बच्चों की खुशियों का ध्यान रखो तो बच्चे भी ऐसा ही रिटर्न गिफ्ट देते हैं. यही आपसी समझ परिवार में खुशियों का सागर लहरा देती है.

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