गीतिका/ग़ज़ल

यकीनन माली का बहा हुआ खूँ होगा

कौन होगा जिसे नहीं तेरी जुस्तजू होगी
फ़िज़ा में दूसरा कहाँ ऐसा रंगों-बू होगा
ये गुलाबों के लबों पे यूँ ही लाली नहीं
यकीनन माली का बहा हुआ खूँ होगा
अभी भी वक़्त है बदल दो ये सारे मंजर
वरना खौफ के साए में वतन हरसूं होगा
मत करो यूँ परीशां खुद को मेरे नाम से
नहीं तो इश्क़ बदनाम कू-ब-कू होगा
बहा दो कोई दरिया मेरे भी सूखे गाँव से
तभी बूढ़े बरगद को थोड़ा शुकूँ होगा
ज़िन्दगी बस लिपट जाएगी उसी के गले
जिसकी ज़ुबाँ पे मिठास, जज़्बों में जुनूं होगा
— सलिल सरोज

*सलिल सरोज

जन्म: 3 मार्च,1987,बेगूसराय जिले के नौलागढ़ गाँव में(बिहार)। शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011), जीजस एन्ड मेरी कॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)। प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका"कोशिश" का संपादन एवं प्रकाशन, "मित्र-मधुर"पत्रिका में कविताओं का चुनाव। सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश। आजीविका - कार्यकारी अधिकारी, लोकसभा सचिवालय, संसद भवन, नई दिल्ली पता- B 302 तीसरी मंजिल सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट मुखर्जी नगर नई दिल्ली-110009 ईमेल : salilmumtaz@gmail.com