जीवन का एक लक्ष्य बनाइए
अगर किसी व्यक्ति से यह पूछा जाये कि आप क्यों जीवित हैं, तो वह व्यक्ति हमसे अवश्य नाराज होगा और सम्भव है कि कुछ उल्टा-सीधा भी कह डाले। लेकिन यह सवाल पूरी तरह उचित है। अधिकांश व्यक्ति नहीं जानते कि वे क्यों जी रहे हैं। वे बस यही सोचते है कि उन्होंने मनुष्य के रूप में जन्म लिया है इसलिए जीवन के दिन काट रहे हैं।
लेकिन इस प्रकार लक्ष्यविहीन जीवन जीना मनुष्य के लिए उचित नहीं। आहार, निद्रा, भय, मैथुन ये सब तो पशु-पक्षियों में भी होता है। मनुष्य का जीवन इन सबसे ऊपर होना चाहिए, क्योंकि मनुष्य को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति कहा गया है।
इसलिए सार्थक जीवन जीने के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने जीवन का एक उद्देश्य निश्चित करें और यथासम्भव उस लक्ष्य की प्राप्ति का उद्योग करते रहें। ऐसा लक्ष्य कोई बहुत बडा या लम्बा चौड़ा हो यह भी कोई आवश्यक नहीं है। अपनी क्षमता और रुचि के अनुसार हमें अपना लक्ष्य निश्चित करना चाहिए, चाहे वह छोटा-सा ही हो।
बहुत से लोग धन-सम्पत्ति कमाने या परिवार बढाने को ही अपने जीवन का लक्ष्य बना लेते हैं। यह उन लोगों से तो अच्छा है जिनका कोई लक्ष्य नहीं है, लेकिन यह समाज के लिए बहुत उपयोगी नहीं होता। ऐसे लोग अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति को खोकर केवल इसी निरर्थक लक्ष्य की पूर्ति में लगे रहते हैं।
अत: हमारे जीवन का लक्ष्य ऐसा होना चाहिए कि वह हमारे लिए तो आनन्ददायक हो ही, समाज के लिए भी उपयोगी हो। समाज के किसी वर्ग की सेवा करना ऐसा सार्थक लक्ष्य कहा जा सकता है। अपनी रुचि और क्षमता के अनुसार हमें समाज का वह वर्ग चुन लेना चाहिए जिसकी हम नि:स्वार्थ सेवा करके अपना जीवन सफल कर सकते हैं।
लक्ष्यविहीन जीवन नीरस होता है। नीरसता से अन्त में ऊब पैदा होती है और मानसिक तनाव, अवसाद आदि व्याधियाँ उत्पन्न होती हैं, जिनकी परिणिति कई बार आत्महत्या जैसी घटनाओं में होती देखी जाती है। इसलिए हमें नीरसता से बचना चाहिए।
जीवन को नीरस होने से बचाने का एक सरल उपाय यह हो सकता है कि हम सप्ताह में कम से कम एक दिन अपने घर से बाहर निकलकर समाज में जायें। यदि कहीं बाहर जाने की सुविधा और समय न हो तो अपने घर से कुछ ही किलोमीटर दूर अपने शहर के ही किसी बडे पार्क या पिकनिक स्पॉट या मन्दिर आदि में जाकर कुछ घंटे गुज़ारें और वहाँ प्रकृति का आनन्द लें।
जो शारीरिक रूप से सक्षम हैं वे अस्पताल, अनाथाश्रम, वृद्धाश्रम, विद्यालय, मन्दिर, गुरुद्वारा, मलिन बस्ती आदि में सप्ताह में एक-दो बार जाकर कुछ न कुछ सार्थक कार्य कर सकते हैं जिससे उनकी आत्मा को असीम शांति का अनुभव होगा और जीवन सार्थक बनेगा।
— *विजय कुमार सिंघल*
पौष कृ २, सं २०७५ वि (२४ दिसम्बर २०१८)