सामाजिक

सेवा का मूल्य

मेरे संस्कार मुझे बचपन से ही सदा सेवा की और अग्रसर करते रहते थे । मेवा खाने कि प्रवृति बचपन से ही थी क्योंकि पिताजी अक्सर मेवा खाते ही रहते थे । एक दिन पिताजी से पूछा “मेरे मित्र तो कहते हैं कि हमारे नसीब में मेवे कहाँ ? उनके नसीब में मेवे नहीं, फिर आप के नसीब में यह कहाँ से आता है ?

 ” बेटा यह सब सेवा का फल है, “मैं एक मंदिर में सेवादार की नौकरी करता था । जब मंदिर के चढ़ावे को गिनने का वक़्त आता मुझे बाहर खड़े  होकर पहरा देना होता था । एक दिन मैंने देख लिया कि वो लोग चढ़ावा थोड़ा बहुत छोड़कर आपस में बाँट रहे हैं ।  उन्हें मजबूरी में मुझे भी हिस्सा देना पड़ा । उस दिन से सेवा का महत्त्व मुझे समझ में आया इसी लिए आज तक सेवा कर रहा हूँ । मंदिर कि सेवा छोड़कर मैंने गाँव कि सेवा का संकल्प लिया, सरपंच बना, इसीलिए आज तक मेवा खा रहा हूँ” उन्होंने बड़े भेद कि बात बताई । तुमने तो सुना ही होगा, कि करोगे सेवा तो मिलेगा मेवा, यदि मेवा  खाना है तो सेवा करो” पिताजी ने एक आँख दबाते हुए कहा था । यह ब्रह्म वाक्य मेरे जहन में अंकित हो गया ।  

एक संत ने कहा भी है “तभी कीजिये सेवा, जब पता हो, मिलेगा मेवा” ।

जैसे पानी के बिना मछली, कुर्सी के बिना नेता की जो हालत होती है वही हालत सेवा के बिना सेवा करने वाले की होती है । सरपंच या पार्षद बनकर एक बार सेवा करने का मौका मिल जाए तो सेवा का ऐसा चस्का लग जाता है कि फिर विधायक, सांसद, फिर मंत्री यहां तक की प्रधान मंत्री तक बनने को मन लालायित रहता है । सरपंच बनने के बाद यह मेरा निजी अनुभव है ।

यदि सेवा बहुत असरदार हो तो यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती है । पिताजी ने मुझे गाँव का सरपंच बनाकर सेवा की महिमा बता दी । पिताजी ने सेवा करने के नुस्खे भी बारीकी से समझा दिए । “मेरी सेवा के बदले तुझे यह उपहार मिल रहा है । यदि तूने अपने काम को सफलता पूर्वक अंजाम दिया तो तेरी संताने जिंदगी भर ऐश करेंगी, जैसे मैंने तुझे अपनी सेवा के बदले सरपंच बना दिया है”, पिताजी ने अपनी विरासत मुझे सौंपने के बाद कहा था ।

एक बार गाँव वालों की सेवा के सिलसिले में, मैं एक दलित के घर पहुंचा और कहा कि देखो चुनाव नजदीक आ रहे हैं  । मैं अब विधायक बनने की तैयारी कर रहा हूँ । मैं कल तुम्हारे घर खाना खाऊंगा।  मुझे तुम लोग अपनी सेवा का मौका दो ।  दलित तो हाथ जोड़ कर कहने लगा भईया जी, हमें माफ़ कीजिये,  आप लोग वायदे तो बहुत करते हैं, करते कराते कुछ नहीं । मुझे नहीं आप लोगों को खाना खिलाना ना ही आपकी सेवा चाहिए । मेरा तो खून खौल उठा,  मैंने उसका कॉलर पकड़ लिया कहा “तू तो क्या तेरे बाप को भी अपने घर खाना खिलाना पड़ेगा, मैंने फोटोग्राफर को भी बुला लिया है, पत्रकार भी आ रहे हैं, एक तो हम लोग तुम्हारी सेवा करें ऊपर से तुम लोग नखरे दिखाते हो । तब कहीं जाकर वो दलित राजी हुआ । अब आप ही बताईये आप किसी कि सेवा करने को निकलें और वो इंकार कर दे तो क्या आप भी यही नहीं करेंगें जो मैंने किया ?

कोई व्यक्ति यदि किसी की सेवा कर रहा हो अचानक सेवा करवाने वाला ही सेवा लेने से इंकार कर दे तो सेवा करने वाले की हालत का आप अंदाजा नहीं लगा सकते । जाके पैर ना फटी बिवाई वो क्या जाने पीर पराई । जैसा मेरे साथ हुआ ऐसा ही मेरी एक बहन के साथ भी हुआ ।

अभी अभी एक समाचार में आपने पढ़ा होगा कि शिवराज सिंह चौहान सरकार में मंत्री रहीं अर्चना चिटनीस बुरहानपुर विधानसभा क्षेत्र में निर्दलीय प्रत्याशी ठाकुर सुरेंद्र सिंह से 5120 वोट से हारी हैं। चुनाव हारने वाली मंत्री अर्चना चिटनीस ने एक सभा में लोगों को धमकी भरे अंदाज में कहा कि जिन लोगों ने मन से मुझे वोट नहीं दिया अगर मैंने उनको रुला नहीं दिया तो मेरा नाम अर्चना चिटनीस नहीं। अब वो बेचारी करती भी तो क्या, मरता क्या ना करता ? भगवान् किसी से भले ही उसकी डिग्री छीन ले, उसकी धन दौलत छीन ले पर किसी से उसकी सेवा का अधिकार ना छीने ।

लोग समझते नहीं की एक ऐसी सेवादार की सेवा लेने से इंकार करने पर उनका क्या हश्र हो सकता है । सेवा सबकी कीजिये, कोई करवाए न करवाए, सेवा आपसे नहीं करवाई तो उसको मजा चखाए

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।

One thought on “सेवा का मूल्य

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    हा हा , रवेंदर भाई व्यंग हो तो ऐसा हो .कमाल कर दिया . आज की राजनीती की पोल खोल दी .मज़ा आ गिया . बहुत दफा बहुत ज़ादा सेवा करना भी नुक्सानदार हो सकता है क्योंकि इस से अपनी सिहत पर बुरा परभाव भी पढ़ सकता है .सारी उम्र के लिए अकेले में कोठरी में रह कर गुजारनी भी पढ़ सकती है .यह इस के साइड इफैक्ट भी बता देने चाहियें सेवा के मैनुअल में .

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