चैनो अमन की तमन्ना
मैं क्या हूँ, कहां हूँ
मेरी बात न पूछिए
एक अदद इंसां हूँ ज़मीं पर
मेरी जात न पूछिए ।
मुहब्बत का मारा इक बदनसीब
कैसे हुआ बर्बाद न पूछिए
ग़ैरों से क्या शिकवा करूँ
कैसे लूटा अपनों ने न पूछिए ।
उठा जहाँ नफ़रत का धुआं
क्यों बुझाने गए आग न पूछिए
चैनो अमन की थी तमन्ना
दिल ही क्यों जला बैठे न पूछिए ।
गिरी लाश जब इंसानियत की
क्यों रोएं बैठकर न पूछिए
शायद दो आंसू काम आ जाए
क्यों आस लगा बैठे न पूछिए ।
दहशत का मंज़र है हर तरफ
ज़ख्मे जिगर का हाल न पूछिए
सरे बाज़ार नीलाम हुआ सुकूं
क्यों नहीं उनको मलाल न पूछिए ।
हवाओं में घुल गया ज़हर
किसकी है ये हरक़त न पूछिए
कितनी शिद्दत से करते हैं वो
अपनों से नफ़रत न पूछिए ।
जाने कब जागेगा बदगुमां-ए-दिल
कब तक और इंतजार न पूछिए
इक रौशनी की तलाश मुझे है
दुआ कबूल अब तो कीजिए ।
ज्योत्स्ना की कलम से
मौलिक रचना