मुझे पीपल बुलाता है
प्रखरतम धूप बन राहों में, जब सूरज सताता है।
कहीं से दे मुझे आवाज़, तब पीपल बुलाता है।
ये न्यायाधीश मेरे गाँव का, अपनी अदालत में
सभी दंगे फ़सादों का, पलों में हल सुझाता है।
कुमारी माँगती साथी, विवाहित वर सुहागन का
है पूजित विष्णु सम देवा, सदा वरदान दाता है।
बड़े बूढ़ों की ये चौपाल, बचपन का बने झूला
बसेरा पाखियों का भी, सहज छाया लुटाता है।
नवेली कोपलें धानी, जनों को बाँटतीं जीवन
पके फल से हृदय-रोगी, असीमित शान्ति पाता है।
युगों से यज्ञ का इक अंग, हैं समिधाएँ पीपल की
इसी के पात हाथी, चाव से, खुश हो चबाता है।
घनी चाहे नहीं छाया, मगर पत्ते चपल कोमल
हवाओं को प्रदूषण से, ये बन प्रहरी बचाता है।
मनुष इसकी विमल मन से, करे जो ‘कल्पना’ सेवा
भुवन की व्याधियों से इस, जनम में मोक्ष पाता है।
-कल्पना रामानी