गीतिका/ग़ज़ल

मुझे पीपल बुलाता है

प्रखरतम धूप बन राहों में, जब सूरज सताता है।
कहीं से दे मुझे आवाज़, तब पीपल बुलाता है।

ये न्यायाधीश मेरे गाँव का, अपनी अदालत में
सभी दंगे फ़सादों का, पलों में हल सुझाता है।

कुमारी माँगती साथी, विवाहित वर सुहागन का
है पूजित विष्णु सम देवा, सदा वरदान दाता है।

बड़े बूढ़ों की ये चौपाल, बचपन का बने झूला
बसेरा पाखियों का भी, सहज छाया लुटाता है।

नवेली कोपलें धानी, जनों को बाँटतीं जीवन
पके फल से हृदय-रोगी, असीमित शान्ति पाता है।

युगों से यज्ञ का इक अंग, हैं समिधाएँ पीपल की
इसी के पात हाथी, चाव से, खुश हो चबाता है।

घनी चाहे नहीं छाया, मगर पत्ते चपल कोमल
हवाओं को प्रदूषण से, ये बन प्रहरी बचाता है।

मनुष इसकी विमल मन से, करे जो ‘कल्पना’ सेवा
भुवन की व्याधियों से इस, जनम में मोक्ष पाता है।

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]