कविता

कविता

बर्षो से लिखती ज़ा रही हूँ

कभी रुकती फिर चलती

यही क्रम बनता फिर पारी

मानो खुशी भरी सी क्यारी.

तन्हा कर देते हैं बिखरे पेज़

सम्भालू ,टैग में लायूं करीने

समेट रही हूँ, सहेज़ में ज़ारी
घर की हर बिखरी लिखत को

अनयास ही पढ़ती रूकती खोल

उस पल को हो जाती हूँ जब

मशबीरा मिला था विद्बान का

जो मन के कोने में धरोहर मान

सम्भाला मान और सम्मान सा.

कड़ी मेहनत बाद भी जब उन पन्नों

को चुन अपना मनमीत मानती हूँ

बरक जीस्त भर उठा नहीं पाई

पड़े कौने में भूले और अनछुए से

लगा उनको अब दीमक चाट धीमे से.

अब वो पल बिना प्रशंसा के दूर आई

अपनी चाहों में कमी दृढ़ता दिखाई.

समझौता मेरी आदत कमी जान-सुनी

यही ले  रेखा विषय सिंच रही मुस्काई.

— रेखा मोहन

*रेखा मोहन

रेखा मोहन एक सर्वगुण सम्पन्न लेखिका हैं | रेखा मोहन का जन्म तारीख ७ अक्टूबर को पिता श्री सोम प्रकाश और माता श्रीमती कृष्णा चोपड़ा के घर हुआ| रेखा मोहन की शैक्षिक योग्यताओं में एम.ऐ. हिन्दी, एम.ऐ. पंजाबी, इंग्लिश इलीकटीव, बी.एड., डिप्लोमा उर्दू और ओप्शन संस्कृत सम्मिलित हैं| उनके पति श्री योगीन्द्र मोहन लेखन–कला में पूर्ण सहयोग देते हैं| उनको पटियाला गौरव, बेस्ट टीचर, सामाजिक क्षेत्र में बेस्ट सर्विस अवार्ड से सम्मानित किया जा चूका है| रेखा मोहन की लिखी रचनाएँ बहुत से समाचार-पत्रों और मैगज़ीनों में प्रकाशित होती रहती हैं| Address: E-201, Type III Behind Harpal Tiwana Auditorium Model Town, PATIALA ईमेल [email protected]