अवधी देश गीत
हमरे देसवा के धरती के है निराली शान -4
महके कण-कण मा प्यार गंध मा बसे दुलार |
भेद भाव से परे है सहे सबही का भार |
अपनी करुणा औ ममता लुटाय लागे ला
हमरे देसवा – – – – – – – – – – – –
उगे गेंहुआ औ धान खेत और खलिहान
फूले सरसोंके फुलवा बढ़े धरती का मान |
धानी लंहगा औ चुनरी लुभाय लागे ला
हमरे देसवा – – – – – – – – – – – –
ऋतुएँ आय बारि बारि करे सोलहों सिंगार ,
कबहुँ छावा है बसंत कबहुँ बरखा बहार|
हिया पीउ की पिरितिया मोहाय लागे ला |
हमरे देसवा – – – – – – – – – – –
डाल-डाल पे हिंडोल छाई हर तरफ बहार,
झींगुरों की झंकार मोरिला करें पुकार ,
खनके कंगना औ मेंहदी सुहाय लागे ला |
हमरे देसवा – – – – – – – – – – – –
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’
लखनऊ ,उत्तर प्रदेश