गीत/नवगीत

अवधी देश गीत

हमरे देसवा के धरती के है निराली शान -4

महके कण-कण मा प्यार गंध मा बसे दुलार |
भेद भाव से परे है सहे सबही का भार |
अपनी करुणा औ ममता लुटाय लागे ला
हमरे देसवा – – – – – – – – – – – –

उगे गेंहुआ औ धान खेत और खलिहान
फूले सरसोंके फुलवा बढ़े धरती का मान |
धानी लंहगा औ चुनरी लुभाय लागे ला
हमरे देसवा – – – – – – – – – – – –

ऋतुएँ आय बारि बारि करे सोलहों सिंगार ,
कबहुँ छावा है बसंत कबहुँ बरखा बहार|
हिया पीउ की पिरितिया मोहाय लागे ला |
हमरे देसवा – – – – – – – – – – –

डाल-डाल पे हिंडोल छाई हर तरफ बहार,
झींगुरों की झंकार मोरिला करें पुकार ,
खनके कंगना औ मेंहदी सुहाय लागे ला |
हमरे देसवा – – – – – – – – – – – –
मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’
लखनऊ ,उत्तर प्रदेश

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016