एक हुए हैं संगम में
जात-पात सब भूल भालकर एक हुये हैं संगम में,
एक दूजे का सभी सहारा बने हुये हैं संगम में।
आपस में कोई बैर नहीं, सब ही कुटिया वासी हैं,
प्रेम “प्रदीप” सभी जन मानस बने हुये हैं संगम में।।
छुआछूत का नाम नहीं, सब गंगा साथ नहाते हैं,
हरि से निकली गंगा में, हर हरि-जन साथ नहाते हैं।
उनको दिखा दो जो कहते हैं धर्म सनातन कुंठित है,
ईश्वर के सब अंश एक हो, संगम साथ नहाते हैं।।
दिव्य कुंभ बन भव्य कुंभ, सबको प्यारा लगता है,
पतित पावनी गंगा का जल, सबको प्यारा लगता है।
तीन देवियाँ जल-धारा बन, जहाँ एक हो जाती हैं
संगम का यह तट अलौकिक सबको प्यारा लगता है।।
प्रदीप कुमार तिवारी
करौंदी कला, सुलतानपुर
7978869045