दोनों पीढ़ियाँ ज़िंदादिल हो
दूरियाँ इतनी ना बढ़ाओ कि पास आना मुश्किल हो
क्यूँ ना घर का बच्चा हमारी गुफ्तगू में शामिल हो
खुदखुशी का ख़्याल भी कभी ना ज़हन में आए
दिल खोल पाएँ ये हमसे विश्वास ऐसा हासिल हो
ना जाने कितनी तकलीफ़ें देती है ये नादान उम्र
तकलीफ़ें इनकी सुनें घर के बड़े और बड़ा दिल हो
मोबाइल पर रहते हैं व्यस्त घंटों, काम है कहकर
पूछो, बात करो खुलकर, जब बड़ रहा खूब बिल हो
अव्वल रहने के भोज तले दब गया इनका हुनर
गुब्बारे हैं, चूमेंगे आसमां, पर हवा ना फ़ाजिल हो
दोस्ती की उम्र में कोई गलत ना दोस्त बन जाये
बढ़ाओ हाथ दोस्ती का ये ख़ाब भी इनका कामिल हो
कशिश रहती है और दीवानगी किसी को पाने की
अकेलेपन का शिकार बनकर ख़ुद के ना कातिल हो
वक़्त की नज़ाकत है पाट दो ये पीढ़ियों की खाई
गले लगाओ इस पीढ़ी को दोनों पीढ़ियाँ ज़िंदादिल हो
अखबार में आए दिन किशोरों/नौजवानो की खुदखुशी की खबर पढ़ कर दुखी मन के भाव