ग़ज़ल
दिल से निकली बद्दुआ कर असर गयी,
मैं ना चाहते हुए भी टूटकर बिखर गयी।
तुमने कोशिश नहीं की दर्द जानने की,
कौन सी बात इतना मजबूर कर गयी।
तुमसे उम्मीद थी तुम समझोगे दर्द को,
तुम्हारी बेरुखी कर घायल जिगर गयी।
जिस झोली में प्यार के मोती थे कभी,
वो झोली गम के आंसुओं से भर गयी।
दिन रात रोती रहती थी अक्सर तन्हा,
पर यादों के सहारे जिंदगी गुजर गयी।
मिलन नहीं था किस्मत में थी जुदाई,
मान कर यही सुलक्षणा कर सब्र गयी।
©️®️ डॉ सुलक्षणा अहलावत