कविता

प्रेम

वो प्यार ही क्या कि जिसपर विषय वासना का राज हो
वो प्यार ही क्या जो जिस्मों और परीक्षा का मोहताज हो
वो प्यार ही क्या जिसमें प्रेमी दो जिस्म एक जान न हो
वो प्यार ही क्या कि जिसमें जज्बातों का मान न हो
उस प्रेम से हमें क्या लेना देना जिसमें हाजिर जान न हो
प्रेमिका लैला जैसी पावन प्रेमी मजनू सा महान न हो
हम वैसे प्रेम के कायल हैं जिसमें सच्चाई की मिठास हो
जिस्मों का कोई मोल न हो बस अपनापन और विश्वास हो
प्यार कोई खेल नहीं यह तोहफा है तकदीर का
प्रेम साधना रांझे की और यौवन है हीर का
प्रेम है पूजा ईश्वर की और अल्लाह की इबादत है
प्रेम तपस्या सोहणी की महिवाल की शिद्दत है
प्रेम बंधन से बंधा नहीं यह तो पंछी आजाद है
प्रेम की देवी है शीरी और मसीहा फरहाद है
वे जाहिल हैं जो ये सोचते कि प्यार हवस का हलवा है
प्यार त्याग है रोमियो और जूलियट का जलवा है
प्रेम नजारा प्रेम बहार और प्रेम ही जहान है
सच्चा प्रेम उपरवाले का सबसे बड़ा वरदान है
सच्चा प्रेम उपरवाले का सबसे बड़ा वरदान है

विक्रम कुमार
ग्राम -मनोरा
पोस्ट-बीबीपुर
जिला – वैशाली
बिहार
9709340990

विक्रम कुमार

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