इंतज़ार
इंतजार सिर्फ इंतजार ही तो लिखा होता है रूहानी मोह्हबत में ,
बाँस के पेड़ों से कब खुश्बू आती है उदास जिंदगी में ।
लहरों की तरह यादों का दौर आता है रुकी जिंदगी में ,
नदिया की तरह बहती ही जाती है रेत
तपती जिंदगी में ।
मेघ के साथ वो आशियाने का जल जाना बारिश में ,
ओले की तरह बर्फ सी जम जाती हैं यादें बंदगी में ।
दीपक और बारिश का नाता सिर्फ एक सपना है खुली आँखों में ,
बिन दिए के भी लौ दे जाती है रोशनी अक्सर अंधेरों में ।
अक्स लगते हैं कभी परछाई तो कभी नासूर बेखुदी में ,
जहर का प्याला पीना ही पड़ता है दूसरों की खुशी में ।
— वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़