गीत – मेरा अस्तित्व
‘मैं’ को पाने की चाहतों में
जाने कब ‘मैं’ भी ‘तुम’ हो गया!
‘मैं’ की तलाश में मेरा अस्तित्व
जाने कैसे कहां गुम हो गया!
‘मैं’ क्या है? ये अंतर्मन बोले
बीते दिनों की किताबें टटोले
हर पन्ने पर वही एक सवाल
आंखों ने चाहा उन शब्दों को धो लें
पलकों की ओस से भीगा मन मेरा
जाने कब दैर-ओ-हरम हो गया!
‘मैं’ की तलाश में मेरा अस्तित्व
जाने कैसे कहाँ ग़ुम हो गया!
‘मैं’ को तलाशता मन मेरा पागल
हर वक़्त जीवन में यही बस हलचल
नहीं रह गया है कुछ भी अब बाक़ी
मुझमें है शेष इक मृगतृष्णा पल-पल
जाने कब आएगा वो दिन नज़र में?
सपनों का रुख़ भी भरम हो गया
‘मैं’ की तलाश में मेरा अस्तित्व
जाने कैसे कहाँ ग़ुम हो गया!
— प्रियंका अग्निहोत्री ‘गीत’