सच्चाई का साथ निभाना ख़लता है…
सच्चाई का साथ निभाना ख़लता है
झूठों को मेरा अफ़साना ख़लता है
कहने को सब चुप हैं लेकिन लोगों को
तेरा मेरे घर पर आना ख़लता है
जिनकी मुस्काहट पर सब कुछ वार दिया
उनको अब मेरा मुस्काना ख़लता है
रूतबे की दौलत की ख़ातिर कविता का
दरबारों में शीश झुकाना ख़लता है
गैर चलाते ख़ंजर तो दुख कम होता
पर अपनों से धोखा खाना ख़लता है
माना देश उन्हें जां से प्यारा है पर
औरों को गद्दार बताना ख़लता है
ग़ैर खुशी में शामिल होते हैं लेकिन
अपनों को हर जश्न मनाना ख़लता है
सतीश बंसल
०८.०३.२०१९