गीतिका/ग़ज़ल

सच्चाई का साथ निभाना ख़लता है…

सच्चाई का साथ निभाना ख़लता है
झूठों को मेरा अफ़साना ख़लता है

कहने को सब चुप हैं लेकिन लोगों को
तेरा मेरे घर पर आना ख़लता है

जिनकी मुस्काहट पर सब कुछ वार दिया
उनको अब मेरा मुस्काना ख़लता है

रूतबे की दौलत की ख़ातिर कविता का
दरबारों में शीश झुकाना ख़लता है

गैर चलाते ख़ंजर तो दुख कम होता
पर अपनों से धोखा खाना ख़लता है

माना देश उन्हें जां से प्यारा है पर
औरों को गद्दार बताना ख़लता है

ग़ैर खुशी में शामिल होते हैं लेकिन
अपनों को हर जश्न मनाना ख़लता है

सतीश बंसल
०८.०३.२०१९

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.