समस्याओं का समाज जीवन के अनुरूप समाधान
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन है। संगठित शक्ति के बल पर यह भारत को परम वैभव के पद पर आसीन करने की दिशा में सक्रिय है। इस धेय्यमार्ग में पड़ने वाली बाधाओं के निराकरण का भी प्रयास किया जाता है। इसीलिए देश के समक्ष उपस्थित संकटों पर इसकी बैठकों में विचार विमर्श किया जाता है। शाखाओं को सभी गतिविधियों का मूल आधार माना जाता है। यहां सामाजिक एकता, समरसता व राष्ट्रप्रेम के संस्कार मिलते है। नागपुर में आयोजित प्रतिनिधि सभा की बैठक में भी इसी प्रकार के अनेक विषयों पर विचार किया गया।
संघ के लिए यह सन्तोष का विषय है कि उसकी शाखाओं और उसमें सम्मलित होने वाले स्वयंसेवकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसके अलावा संघ के विचार से सहमति रखने वालों की संख्या में भी बड़ी वृद्धि हुई है। सहसरकार्यवाह मनमोहन वैद्य ने बताया कि अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक वर्ष में एक बार आयोजित की जाती है। एक वर्ष दक्षिण में, एक साल उत्तर में एवं तीसरे वर्ष नागपुर में होती है। प्रति दो हजार स्वयंसेवकों पर एक प्रतिनिधि का चयन किया जाता है। यह बैठक संगठन कार्य के विस्तार, दृढ़ीकरण एवं विविध प्रांतों के विशेष कार्य, प्रयोग एवं अनुभव साझा करने की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है। बैठक में समाज जीवन में सक्रिय पैंतीस संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा भी वृत्त रखा जाता है। इसके अलावा संघ शिक्षा वर्गों के प्रवास व प्रशिक्षण तथा अगले वर्ष की कार्ययोजना भी इस बैठक में तैयार की जाती है। इस बैठक में चुनावी राजनीति पर चर्चा नहीं होती। शतप्रतिशत मतदान के लिए स्वयंसेवक समाज में जनजागरण करेंगे। इस वर्ष उत्तरप्रदेश सरकार और विभिन्न पीठों के सहयोग से प्रयागराज कुंभ की प्रेरणा से वैचारिक कुंभ आयोजित किये गए। इनमें युवा मातृशक्ति, समरसता पर्यावरण,सर्वसमावेशी,कृषि कुम्भ शामिल थे। यहांसंबंधित विषयों के अनुकूल विचार विमर्श हुआ। इस वर्ष सक्षम के माध्यम से शारीरिक, मानसिक रूप से अक्षम लोगों के लिए विभिन्न आयोजन किए गए। नेत्र कुंभ के में आठ सौ से ज्यादा विशेषज्ञों ने दो लाख से अधिक लोगों का परीक्षण कर रिकार्ड बनाया। साथ ही डेढ लाख लोगों को निःशुल्क चस्मे उपलब्ध कराए गए। गुणवत्ता एवं कार्य विस्तार की दृष्टि से संघ के छह सह सरकार्यवाह तयतालिस प्रांतों में जिलास्तर पर बारह हजार कार्यकर्ताओं की बैठकें ले चुके हैं। उन्नीस सौ नब्बे के बाद समाज के बीच पहुंच बढ़ाने के लिए सेवा प्रकल्प और कार्य पर केंद्रित कार्यपद्वति के माध्यम से तीन सौ विकसित गांवों को प्रभात गांव की श्रेणी में कार्य चल रहा है। एक हजार हजार गांव ऐसे हैं जहां कार्य प्रारंभ हो चुका है। संघ की कार्ययोजना में भारतीय नस्ल की गायों के संरक्षण और संवर्धन के लिए गौ-उत्पादों के प्रचार-प्रसार पर विशेष जोर दिया जा रहा है। इसके साथ ही लोग अपने परिवार के बीच अधिक समय बिताएं, इसके लिए कुटुम्ब प्रबोधन के जरिए काम चल रहा है। एक नई गतिविधि को अपने कार्ययोजना में शामिल करते हुए पर्यावरण संरक्षण और जल प्रबंधन करने के लिए समाज को जागरूक करने का काम किया जा रहा है। प्रति वर्ष चौदह से चालीस वर्ष तक के एक लाख युवाओं को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। बीस से पैंतीस वर्ष के एक लाख से अधिक युवा संघ से जुडे़ है। देश में खंड स्तर पर करीब साढ़े तीरसठ हजार शाखाओं के माध्यम से अठासी प्रतिशत खंडों तक संघ की पहुंच हो गई है। करीब पचपन हजार मंडलों तक संघ कार्य का विस्तार हुआ है। पाकिस्तान पर हुई सर्जिकल स्ट्राइक भारत के लिए गर्व की बात है। यह राजनीति का नहीं राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय है। ऐसे में इस पर सबूत मांगना राष्ट्रीय हितों के प्रतिकूल है। संघ के सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने ठीक कहा कि अगली बार ऐसे लोगों को साथ ले जाना चाहिए। पिछली बार भी इन्होंने सर्जिकल स्ट्राइक को झुठलाने का प्रयास किया था। ऐसी राजनीति अपनी सेना के मनोबल को गिराने और शत्रु के मनोबल को बढ़ाने वाली होती है। लेकिन ऐसे लोगों को निराशा हाँथ लगेगी, क्योकि भारत की जनता कोई सबूत नहीं मांग रही है। उसे अपने जवानों पर विश्वास है। यह बिडंबना है कि विश्व का कोई देश सबूत नहीं मांग रहा है। संघ का विचार है कि राम मंदिर मसले पर निर्णय लेते समय विशेष धर्म परम्परा का पालन करने वालों का अभिमत लेना श्रेयष्कर होता।
सरकार्यवाहक भैयाजी जोशी ने कहा कि मंदिर निर्माण को लेकर सरकार की प्रतिवद्धता पर संदेह नहीं है। न्यायालय ने उसे प्राथमिकता का नही माना है, ये दुर्भाग्यपूर्ण है। सर्जिकल स्ट्राइक से सरकार ने अपनी सैन्य शक्ति का सन्देश दिया है, इसके लिए सरकार की सराहना करनी चाहिए। इस वर्ष संघ तीन मुद्दों पर कार्य करेगा। जिसमें आजाद हिंद फौज की पछहत्तरहवी वर्षगांठ मनाई जाएगी, दूसरा जलियावाला हत्याकांड की घटना को स्मरण करेंगे, तीसरा गुरुनानक जयंती को बनाई जाएगी। राम मंदिर उसी जगह बनेगा। जो चित्र में निर्धारित था, उसी के अनुसार बनेगा। न्यायिक निर्णय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। उसके बाद ही अध्यादेश पर विचार होना चाहिए। संवैधानिक संस्थाओं को सामाजिक परम्पराओं, मान्यताओं का सम्मान करना चाहिए। एक दूसरे के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। हिन्दू विचारों से जुड़े लोगों की और हिन्दू श्रद्धा पर कुछ लोग आघात कर रहे हैं। यह एक तरह का षड्यंत्र है। संविधान महत्वपूर्ण हैं लेकिन समाज जीवन केवल संविधान पर नहीं चल सकता है। राम मंदिर अयोध्या पूरा होने तक आंदोलन जारी रहेगा। राम मंदिर हमारी अस्मिता का प्रतीक है, यह हमारी आस्था का केंद्र है। हमारी न्यायालय से अपेक्षा हैंकि इस सम्बंध में शीध्र सुनवाई कर निर्णय करे। प्रतिनिधि सभा ने ज्वलंत विषयों पर प्रस्ताव भी पारित किया। अभारतीय दृष्टिकोण के आधार पर हिन्दू आस्था और परम्पराओं का अनादर अनुचित है। लेकिन कुछ तत्व ऐसा षड्यंत्र कर रहे है।
शबरीमला मंदिर प्रकरण इसी का प्रमाण है। हिंदुत्व ईश्वर के एक ही स्वरूप अथवा पूजा पद्धति को स्वीकारने तथा अन्यों को नकारने वाला विचार नहीं है, अपितु संस्कृति के विविध विशेष रूपों में अभिव्यक्त होने वाला जीवन दर्शन है। इसमें विविध पूजा पद्धतियों, स्थानीय परम्पराओं व उत्सव,आयोजनों से प्रकट होता है। इन विद्यमान विविधता के सौंदर्य पर नीरस एकरूपता को थोपना असंगत है। हिन्दू समाज ने अपनी प्रथाओं में काल और आवश्यकता के अनुरूप सुधारों का सदैव स्वागत किया है, परन्तु ऐसा कोई भी प्रयास सामाजिक, धार्मिक तथा आध्यात्मिक नेतृत्व के मार्गदर्शन में ही होता रहा है और आम सहमति के मार्ग को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती रही है। केवल विधिक प्रक्रियाएँ नहीं, अपितु स्थानीय परम्पराएँ व स्वीकृति सामाजिक व्यवहार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
सम्पूर्ण हिन्दू समाज आज एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति का सामना कर रहा है। केरल की सत्तारूढ़ वाम मोर्चा सरकार, माननीय उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा पवित्र शबरीमला मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाओं को प्रवेश के आदेश को लागू करने की आड़ में हिन्दुओं की भावनाओं को कुचल रही है।
शबरीमला की परंपरा देवता और उनके भक्तों के बीच में अनूठे संबंधों पर आधारित है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्यायालय ने निर्णय तक पहुँचते हुए सैंकड़ों वर्षों से चली आ रही समाज स्वीकृत परंपरा की प्रकृति और पृष्ठभूमि का विचार नहीं किया; धार्मिक परम्पराओं के प्रमुखों के विचार जाने नहीं गए। महिला भक्तों की भावनाओं की भी अनदेखी की गई। समग्र विचार के अभाव में स्थानीय समुदायों द्वारा सदियों से स्थापित, संरक्षित और संवर्धित वैविध्यपूर्ण परम्पराओं को इससे ठेस पहुँची है।
केरल की मार्क्सवादी सरकार के कार्यकलापों ने अय्यप्पा भक्तों में मानसिक तनाव उत्पन्न कर दिया है। नास्तिक, अतिवादी वामपंथी महिला कार्यकर्ताओं को पीछे के दरवाजे से मंदिर में प्रवेश करवाने के राज्य सरकार के प्रयत्नों ने भक्तों की भावनाओं को बहुत आहत किया है। वामपंथी अपने क्षुद्र राजनैतिक लाभ एवं हिन्दू समाज के विरुद्ध वैचारिक युद्ध का एक अन्य मोर्चा खोलने के लिए यह कर रही है। यही कारण है कि अय्यप्पा भक्तों, विशेषकर महिला भक्तों द्वारा अपनी धार्मिक स्वतंत्रताओं और अधिकारों की रक्षा के लिए एक स्वतःस्फूर्त और अभूतपूर्व आन्दोलन उठ खड़ा हुआ। मंदिर परम्पराओं की रक्षा हेतु संयम तथा शालीनता से संघर्षरत रहने का आह्वान किया गया। प्रतिनिधि सभा ने केरल सरकार से आग्रह किया कि श्रद्धालुओं की आस्था, भावना तथा लोकतांत्रिक अधिकारों का आदर करे और अपनी ही जनता पर अत्याचार न करे। प्रतिनिधि सभा आशा करती है कि उच्चतम न्यायालय इस विषय में दायर पुनर्विचार व अन्य याचिकाओं पर सुनवाई करते समय इन सब पहलुओं का समग्रतापूर्वक विचार करेगा। अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा देश के लोगों से शबरीमला बचाओ आन्दोलन को हर प्रकार से समर्थन देने का आह्वान करती है। स्पष्ट है कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपनी सामाजिक, सांस्कृतिक,राष्ट्रीय दायित्वों के प्रति सतत जाग्रत संगठन है। प्रतिनिधि सदन ने इसी के अनुरूप विचार विमर्श किया।
— डॉ दिलीप अग्निहोत्री