होली की मस्ती में
होरी के हुड़दंग में सबकुछ जाती हूँ भूल ,
सुबह शाम बस याद रहता है
अबीर गुलाल और टेसू फूल ,
सखियन संग धूम मचाती
जब टोली संग जाती हूँ ।
उड़े गुलाल और पड़े फुहार
मै गीत खुशी के गाती हूँ ॥
होरी के ————
नाचूं गाऊँ और खुशी मनाऊँ ,
जब में मस्ती पर आती हूँ ।
लाज शरम सब छोड़ -छाड़ के
हुड़दंग में शामिल हो जाती हूँ ॥
होरी के ————–
रंग पर रंग चढ़े कितने भी
परवाह मै नही करती हूँ ।
नशा चढ़े मुझ पर कितना भी ,
मै बिल्कुल भी नही डरती हूँ ॥
होरी के ——————
गलियारों में धूम मचाती
जब हो जाती मै थककर चूर ।
तब तान चद्दरा में सो जाती
फाग का आनंद लेती भरपूर ॥
होरी के ——————-
— डॉ . माधवी कुलश्रेष्ठ