इतिहास

विश्व मे सबसे लम्बी अवधि तक लगनेवाला “शहीद मेला”

आजादी के सत्तर साल बाद समस्त देशवासी गौरवान्वित हैं कि- देश के लिए शहीद सैनिकों को समर शहीद स्मारक देश को समर्पित किया गया, जो किसी भी देश के लिए जरूरी भी है।  पर, उन भूले-बिसरे  शहीदों को आज तक क्या मिला, जिन्होंने देश के स्वतंत्रता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति दी है। जिनके बदौलत अर्धांग भारत  खुद को आजाद देश कहने की स्थिति में है। इस आजादी के नींव के पत्थर को भी देश में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजी हुकूमत के प्रतिरोध में प्रताड़ित और शहीद होनेवालों के नाम स्वर्णाक्षरों में लिखे जाने की जरूरत नहीं है ? स्वतंत्रता आंदोलन में सभी जाति, धर्म, सम्प्रदाय से ऊपर उठकर एक मात्र अंग्रेजों की गुलामी से आजादी के खातिर सर्वस्व न्योछावर कर दिया क्या उनकी सांप्रदायिक सौहार्दता और एकजुटता के लिए सन्देश स्वरूप शहीद मन्दिर का निर्माण नहीं होना चाहिए था? जो देश अपने मूल को भूलकर पत्तों की बात करता हो उससे अधिक और शर्मनाक स्थिति और क्या हो सकती है ?
क्रूर अत्याचार के गर्भ से लेता पैदा
शासनसत्ता के विरुद्ध  विरोध स्वर
यूँ भी अर्थ, पदलोलुप  सत्ता कभी
पलट देती है पन्ने करती नहीं शोध
गाहे-बगाहे गवाही रहा है इतिहास।
ऐसी ही क्रूर परिस्थितियों पैदा हुए
बिस्मिल, भगत, बोस औ’ आजाद।
      जब ईस्ट इंडिया कम्पनी को व्यापार करने की अनुमति तत्कालीन मुगल शासक जहाँगीर से सूरत में मिली। लुटखोरी की आग के साथ अत्याचार से सूरत शहर की सूरत ही बदल गई। भारत 565 रियासतों में बेशक विभाजित रहा पर सल्तनत तो मुगलों के हाथ था। अंग्रेज व्यापारियों की चालबाजी और सत्ता पर येनकेन प्रकारेण कब्जा करने की नीति ने भारत को गुलाम बना दिया।
   जहाँ रानी लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे, बहादुर शाह जफर, नाना साहब पेशवा, महाराजा तेज सिंह जैसे कई सत्ताधारियों ने विरोध में लड़ाईयाँ लड़ीं वहीं कई रियासतों ने अंग्रेजों का साथ दिया और अंततः सम्पूर्ण भारत अंग्रेजों का गुलाम हो गया।
     अर्थोपार्जन के निमित्त कानून बनाकर लूट को कानूनी जामा पहना दिया गया और लूट का विरोध गैरकानूनी। इन्हीं कानूनों का पालन कराने के लिए पुलिस दल का गठन  किया गया। और इसी लूट के निमित्त कानून व्यवस्था की न्यायिक प्रक्रिया का अबलम्बन भी। इस तरह लूट की व्यवस्था के बाद क्रूर अत्याचार का सिलसिला भी शुरू हो गया।
     इसी अत्याचार और क्रूरता की सीमा पार करते हुए जेनरल डायर ने अमृतसर के जालियांवाला बाग में, रॉलेट एक्ट के विरोध में शांतिपूर्ण सभा पर, 1650 राउंड गोलियों की बरसात मात्र 15 मिनट में करके जिस क्रूरता का परिचय दिया, उसी नरसंहार के शताब्दी वर्ष के अवसर पर इस शहीद मेले  का  केंद्र बिंदु बनाया गया है।
         इतना नहीं जालियाँवाले नरसंहार की घटना ने पूरी मानवता को शर्मसार ही नहीं किया बल्कि पूरे देशवासियों को झलझोर कर रख दिया। और विरोध को संकल्प के रूप में पृष्ठभूमि तैयार हो गई। इस घटना को एक साल भी नहीं हुई कि पं गेंदालाल दीक्षित के नेतृत्व में क्रांतिकारी गुप्त सँगठन मातृवेदी की स्थापना भी हुई।
      क्रूरता की हदें पार करती व्यवस्था को देखते-सुनते और दांत पिसती जवानियों ने अंगड़ाईयाँ ली और व्यवस्था को बदलने की ठानी। जालियाँवाला बाग की घटना के 21 साल बाद 1940 में प्रतिशोध की आग सरदार उधम सिंह के रूप में लंदन तक पहुंची।
       देश की आजादी कहें या फिर व्यवस्था परिवर्तन के निमित्त साढ़े नौ लाख शहीदों ने अपने शहीदी स्वेच्छा से दी। इसकी गवाही तो तत्कालीन सरकारी आंकड़े देते है और गैर सरकारी आंकड़े तो कहीं अधिक हैं। विश्व इतिहास में किसी भी देश ने आजादी के निमित्त इतनी कुर्बानियाँ नहीं दी गई है।
      एक बबंडर सा फैला था पूरे देश में। जाति-धर्म-सम्प्रदायों से ऊपर उठकर बर्बरता का विरोध करने के जज्बे को सलाम करता हुआ बेबर की माँटी ने भी 15 अगस्त’1942 को अपने तीन लाल खोए। विद्यार्थी कृष्ण कुमार, जमुना प्रसाद त्रिपाठी और सीताराम गुप्त। मगर, एक दिन के लिए सही बेबर थाने पर तिरंगा फहरा कर बेबर को आजाद घोषित कर दिया। पूरी सरकारी व्यवस्था ध्वस्त हो गई। पुलिस बल डरकर थाने खाली कर गई। पुनः 16 अगस्त को सत्ता व्यवस्था अधिक पुलिस बल की व्यवस्था के साथ धारा 144 लगा दिया गया जिसमें पाँच से अधिक व्यक्तियों के एकत्र होने की मनाही हो गई। और पुलिस बल आतंक फैलाने के उद्देश्य से प्रताड़ना और गिरफ्तारियाँ करने लगी। जिनमें आज भी कई शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों के परिजन मौजूद हैं। जिन्हें शहीद मेला, बेबर द्वारा सम्मानित किए जाने परम्परा अपने 47वें साल में प्रवेश कर चुका है।
          आज जब देश का युवा पीढ़ी उन वीर क्रांतिकारी शहीदों को भूलने सा लगा है। ऐसे में बेबर की धरती लगातार 19 दिनों तक उन  शहीदों के नाम पर मेला लगाकर एक अनूठा मिशाल लिए उत्कृष्टता की ओर अग्रसर ही नहीं बल्कि समाजिक ज्वलन्त समस्यायों पर परिचर्चाओं के साथ सांस्कृतिक एवं प्रतिभा खोज की दिशा में भी अग्रसर है।
     बेबर का शहीद मेला, 47 वर्ष पूर्व 1972 से गांधीवादी विचारधारा से पोषित समाजवादी विचारक एवं पूर्व विधायक स्व0 का0 जगदीश नारायण त्रिपाठी जी की दूरदृष्टि को श्रेय प्राप्त है। पर, वर्तमान स्वरूप फिल्मों तक पहुँचाने का श्रेय तो उन्हीं के सन्देशवाहक श्री राज त्रिपाठी एवं उनकी समस्त टीम को प्राप्त है।
       मेले का उद्देश्य मात्र शहीदों की श्रद्धांजलि देने तक ही सीमित नहीं बल्कि प्रतिभा उन्नयन के अतिरिक्त खेल-कूद, साहित्यिक परिदृश्य में काव्य सम्मेलनों द्वारा समाज को संदेश देने के साथ मनोरंजक बनाने का भी भरसक प्रयासरत है। जहाँ एक ओर राष्ट्रप्रेम, स्वास्थ्य, स्वच्छता, मताधिकार जागरूकता अभियान प्रायोजित किये जाते हैं वहीं दूसरी ओर शरीर सौष्ठव (कुश्ती) प्रतियोगिता, महिला सम्मेलन द्वारा महिलाओं की समस्या और निदान भी आयोजित किये जाते है। इतना ही नहीं साम्प्रदायिक सद्भाव के तहत तुलसीदास कृत रामायण के सुंदर काण्ड का सस्वर गायन से आमजन को सन्देश प्रचारित करते हैं तो वहीं कबीर के सिद्धांतों और विचारों को, विगत वर्षों से इंदौर की प्रथम महिला कबीर गायिका सुश्री अंजना सक्सेना एवं उनकी टीम द्वारा संगीतमय ढंग से पेश किया जाता रहा है। जो साम्प्रदायिक सद्भाव के निमित्त देश की तात्कालिक आवश्यकता भी है।
         वर्तमान की आधुनिक आवश्यकता के अनुरूप तो फिल्मांकन द्वारा भी शहीदों के सपनों को जन-जन तक पहुँचाने के प्रयास के रूप में फ़िल्म फेस्टिवल का आयोजन मेले के उत्तरोत्तर अग्रगणी कदमों की गवाही को तैयार है।
      वहीं इस आर्थिक युग में असहनीय पीड़ा तो तब होती है जब इस मेले में उन शहीदों और स्वतंत्रता सेनानियों के तस्वीरों पर पुष्पार्पण करने उनके ही परिवारीजन नहीं आते।
      आज वक्त की पुकार है स्वतंत्रता संग्राम के उन शहीदों के नाम पर भी एक स्मारक स्थल का निर्माण हो। जिसमें उन शहीदों के नाम भी स्वर्णाक्षरों में मुद्रित हों।
 श्याम “स्नेही” श्याम

श्याम स्नेही

श्री श्याम "स्नेही" हिंदी के कई सम्मानों से विभुषित हो चुके हैं| हरियाणा हिंदी सेवी सम्मान और फणीश्वर नाथ रेणु सम्मान के अलावे और भी कई सम्मानों के अलावे देश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी प्रस्तुति से प्रतिष्ठा अर्जित की है अध्यात्म, राष्ट्र प्रेम और वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों पर इनकी पैनी नजर से लेख और कई कविताएँ प्रकाशित हो चुकी है | 502/से-10ए, गुरुग्राम, हरियाणा। 9990745436 ईमेल[email protected]