कविता

सोंचता हूँ ! मेरे होने का अर्थ

सोंचता हूँ ! मेरे होने का अर्थ
और जीने का मर्म है क्या भला !

ज़िंदगी की खलिशें, दर्द की गठरियाँ,
हँसते ज़ख़्म और संघर्षों का क़िला !!

हर तरफ़ शोर, बेख़बर मौत की ख़ामोशी,
जागती नीदें और टूटते ख़्वाबों का क़ाफ़िला !!

सोंचता हूँ ! मेरे होने का अर्थ
और जीने का मर्म है ……………

नीरज सचान

Asstt Engineer BHEL Jhansi. Mo.: 9200012777 email [email protected]