कविता

मैं कैसे मरा !

मैं कैसे मरा……

ज़िंदगी का हर फ़लसफ़ा,
बस दर्द ही देता गया !
मैं कैसे मरा ये भी ,
मेरा दिल चीर के देखा गया !!

कभी गुमाँ रहता था मुझे,
जिस अपनी देह पर !
कुछ जला कर किया ख़ाक ,
कुछ यूँ ही फेंका गया !!

मैं कैसे मरा ये भी ,
मेरा दिल चीर के देखा गया !!!

ये ज़िंदगी भी एक घूमती भँवर है ! जो डूब गया वो रम गया ,
जो बच गया वो मर गया !!

नीरज सचान

Asstt Engineer BHEL Jhansi. Mo.: 9200012777 email -neerajsachan@bhel.in