ग़ज़ल
इस तूफान में एक शमा जलाई जाए
आज फिर शर्त ज़िंदगी से लगाई जाए
वादा-ए-वस्ल है उनका कल सुबह हमसे
सोचो जल्दी से कैसे रात बिताई जाए
तेरे करीब होने का भरम हमें भी है
कभी हमें भी निगाहों से पिलाई जाए
करेंगे बाद में हम भी बड़ी-बड़ी बातें
पहले पेट की तो आग बुझाई जाए
कहते हैं कि झूठी वाह नहीं करता ये
चलो आईने को कोई गज़ल सुनाई जाए
— भरत मल्होत्रा