गज़ल
हर कोशिश मेरी नाकाम हुई जाती है
बस यूँ ही सुबह से शाम हुई जाती है
खुद-ब-खुद आ गए हैं जलने परवाने
शमा बिना वजह बदनाम हुई जाती है
जबसे इस कैद में तू आ गया है साथ मेरे
सज़ा मेरे लिए ईनाम हुई जाती है
रोज़ होने से मुलाकात, कशिश घटने लगी
बात जो खास थी अब आम हुई जाती है
मैं तेरी बेवफाईयों का गिला किससे करूँ
मेरी वफा मुझपे इल्ज़ाम हुई जाती है
— भरत मल्होत्रा