कविता- शहीद के घर त्यौहार
होली पर गीत लिख रहा
हाथ कांपने लगे
हदय रोकर सवाल किया,
अरे शहीदों के घर पर
क्या होता होगा,
जब एक बुजुर्ग मां बाप का
हदय रोता होगा,
नन्हा सुकुमार बच्चा
जब त्यौहार पर
तैयार होकर
मां से सवाल किया”
वो मोहल्ले सब
अपने पिता के साथ
खरीदने बाजार जा रहे है,
मेरे पिता कहां है
वो कब आ रहे है,
मां क्या समझाती
खुद समझ में ना आता
बस भोले की बात सुनते
पीढा़ हदय को पहुंचाती
सामने वो मजंर जब
तिरंगा में लिपटकर
वो सदा के लिये देश का
हो गया,
अपने बच्चे को मौन
होकर क्या समझाती।।
— अभिषेक राज शर्मा