कविता

आम के बौर सी जिंदगी

आ गया बसंत का मौसम,
लग गए आम में बौर।
उनकी खुशबू लुभाने लगी,
हरे हरे पत्तों में झांकती पीले पीले आम की बौर।
आंधियों में कुछ झड़ जाएंगे बौर,
कुछ खड़े रहेंगे सीना तान।
कुछ  होते हैं जिद्दी, कुछ होते कमजोर,
उसी तरह मनुष्य का जीवन होता है,
थोड़ी सी परेशानी आई कमजोर पड़ गए हम।
कुछ लोग चाहे जितनी भी परेशानी आए नहीं घबराते हैं,
अपना रास्ता स्वयं बनाते हैं।
आम के बौर की तरह बनो,
जो एक पका रसीला फल बनता है,
जितना स्वामी अपने को बनाओगे,
उतना ही सबका प्यार पाओगे।
गरिमा

गरिमा लखनवी

दयानंद कन्या इंटर कालेज महानगर लखनऊ में कंप्यूटर शिक्षक शौक कवितायेँ और लेख लिखना मोबाइल नो. 9889989384