बाल कविता – मुनिया की घड़ी
पापा अब मैं हुई बड़ी।
ला दो मुझको एक घड़ी।
बिलकुल भैया के जैसी।
न लूँगी ऐसी वैसी।
स्कूल पहन कर जाउंगी।
सब पर रौब जमाउंगी।
पापा जी बोले हँसकर।
कल ही देते हैं लाकर।
पर मुनिया एक बात सुनो।
समय देखना तो सीखो।
जब सही समय बतलाओगी।
तभी तो रौब जमाओगी।
balman sahaj bhavabhivyakti