बाल कविताबाल साहित्य

एक मुर्गी के चूज़े चार

एक मुर्गी के चूज़े चार।
मुर्गी करती उनको प्यार।
चारों बहुत ही थे नटखट।
दिनभर करते थे खटपट।

एक दिन मुर्गी गयी शहर।
छोड़ गयी उनको घर पर।
दरवाजा न खोलना तुम।
आँगन में न डोलना तुम।

पर चूजों ने बात न मानी।
करते करते वो शैतानी।
आ पहुंचे बीच सड़क पर।
चारों खेलें अकड़ अकड़ कर।

तभी कहीं से आफत टपकी।
मोटी बिल्ली उन पर झपटी।
घबरा कर जो चूज़े भागे।
आये एक मोटर के आगे।

चोट लगी ऊपर नीचे।
बिल्ली अब भी थी पीछे।
चूज़े छिप गए इधर उधर।
जान बची भागे घर पर।

जब मुर्गी वापिसा आई।
चूजों ने सब बात बताई।
माँ बोली अब करो आराम।
आओ लगा दूँ तुमको बाम।

*डॉ. मीनाक्षी शर्मा

सहायक अध्यापिका जन्म तिथि- 11/07/1975 साहिबाबाद ग़ाज़ियाबाद फोन नं -9716006178 विधा- कविता,गीत, ग़ज़लें, बाल कथा, लघुकथा