कविता

मैं कविता

“मैं कविता”

मैं ह्रदय में उठते ज्वार की अभिव्यक्ति,
एक कवि हृदय की मनमोहक शक्ति।

कहती हूं कभी मैं ह्रदय प्रेम की भाषा,
मैं हूं एक कोमल ह्रदय की अभिलाषा।

बहती जाती हूं जैसे कोई निर्झर झरना,
कहती जाती हूं मन में उठती भावना।

स्नेह की भाषा से होती हूं मैं सिंचित,
ईर्ष्या द्वेष की भावना से होती हूं पीड़ित।

जागती हूं तब जब जग सारा सो जाता,
शब्दों के रूप में बाहर आने मन अकुलाता।

कवि की कलम का काली स्याही बनकर,
बन जाती आकृति मेरी शब्दों में ढल कर।

जब मेरा रूप मानव विकृत कर देता,
मेरी आत्मा को बड़ा आघात तब लगता।

बहाती हूं आंसू तब एक कोने में बैठकर,
मेरी ही आत्मा चली जाती मुझसे रूठकर।

बिन आत्मा के नहीं मेरा कोई अस्तित्व,
जैसे ह्रदय हीन किसी व्यक्ति का व्यक्तित्व।

भूल को उजागर करने की शक्ति है मुझमें,
निर्भीक कहती जाती जो उदगार है मन में।

कभी मैं हृदय प्रेम झरना बन बहती जाती,
कभी मानवता की उन्मुक्त पक्षधर बनती।

स्नेह ममता की भाषा से जब गढ़ी जाती,
तब मुझसे परिचित होते मनुज भली-भांति।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]