कौवा चला हंस की चाल
कौवा चला हंस की चाल, चुगे दाना मोती।
बदल कर अपनी वेशभूषा, पहना कुर्ता धोती।।
पहना कुर्ता धोती, अब कोई न पहचान पाता।
बैठा जाकर हंस सभा में, अपना मुखड़ा छुपाता।
मुख से कुछ बोले न, न मुखड़ा ऊपर उठाया।
मूल स्वभाव कैसे बदलेगा, आखिर है वो कौवा।।
अनोखा एक पक्षी बैठा, देखा हंस का राजा।
हमारे मध्य ये कौन आया, नहीं है अपनी प्रजा।।
नंही है अपनी प्रजा, फिर है कौन यह विहग।
देखा नहीं कभी जंगल में, मैंने ऐसा कोई खग।।
बोलो क्या है नाम तुम्हारा, हो रहा है हमें धोखा।
किस देश से तुम आए हो, तुम पक्षी एक अनोखा।।
जैसे मुंह खोला कौवा ने, झरने लगे स्वर पत्थर।
कर्कश स्वर गूंज उठा, कानों में गया तीर उतर।।
कानों में गया तीर उतर, घूम गया सबका सिर।
आया हूं मैं परदेस से, सुन डोल गया सबका धीर।।
अपनी सभा में करो स्वीकार, जैसे दिखता नहीं वैसे।
स्वर, रूप न देखो मेरा, गुण में हूं मैं हंस के जैसे।।
जन्म हुआ परदेश में, नहीं पता हमारा संस्कार।
अपनी सभा में कैसे तुम्हे, कर लें हम सब स्वीकार।।
कर लें हम सब स्वीकार, बोली में नहीं कोई मिठास।
जग भूखा मीठे बोल का, तीखे बोल न मिटाते प्यास।।
लौट जाओ बिरादरी में, जाकर करो अपने सत्कर्म।
कर्म से जाना जाता प्राणी, विफल न करो अपना जन्म।।
आया चुनाव का मौसम, जंगल का मौसम गया बदल।
हंस की सभा में एक कौए को, नहीं देना चाहिए दखल।।
नहीं देना चाहिए दखल, नाम हमारा हो जाएगा बदनाम।
इस बार चुनाव में हम फिर, हो जाएंगे बिल्कुल नाकाम।।
हंस बनेगा इस बार राजा, हमें और कोई भी ना भाया।
देकर वोट हमें जिताना भाई, चुनाव का मौसम है आया।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।