नेत्रदान
है व्यर्थ इस काया का गर्व करना,
है क्षणिक जीवन मिट्टी में मिलना।
है न तेरा न मेरा बेकार का झगड़ना,
है जीवन के साथ सबका अंत होना।
सोचो गर इसका उपयोग हो जाए,
अंग हमारा किसी को जीवन दे जाए।
अंधेरा किसी का हम मिटा जाएं,
आँखों में उजाले की ज्योति दे जाएं।
जीते जी नहीं कर सके पर सेवा,
मर कर तो किसी के काम आ जाएँ।
अब जो नहीं है मेरे किसी काम का,
उसका सुंदर उपयोग कर जाएं।
बहुत देख ली दुनिया मैंने इससे,
अब कोई और सूरज चाँद देख जाएं।
कैसे होते हैं नदी,पहाड़,पेड़, पर्वत,
चहकते पक्षियों का रूप देख जाए।
कर लिया बहुत स्पर्श माता पिता का,
एक बार तो उनकी सूरत देख जाए।
सालों बाँधी राखी कलाई पर बहन ने,
काश बहन का प्यारा मुखड़ा देख जाए।
अब भी न समझे तो कब समझोगे,
नेत्रदान करके जीवन सफल बना जाएं।
है यह महादान इसकी महिमा को समझो,
चलो आज ही इस महादान को कर आएं।
— निशा नंदिनी गुप्ता
तिनसुकिया, असम