कविता

कविता – उदास थी‌ जिन्दगी

आज बैठी जब मैं
फुर्सत में कुछ देर
कर ली जिन्दगी से मुलाकात
बहुत नाराज़ थी जिन्दगी
शायद उदास थी‌ जिन्दगी
पतझड़ के सूखे पत्तों की तरह
इधर-उधर बिखरी पड़ी थीं जिन्दगी
जानना चाहा क्या हुआ
उसने ‌कुछ यू साझा‌ किया
मै मुट्ठी में बंद ‌रेत की तरह
फिसलती ही‌ जा रही हूं
समुद्र की लहरों की तरह
आगे बढ़ती ही जा रही हूं
ना किनारा मिला
ना ही तलहट,
ना ही कुछ और
तो मैं क्यों आगे बढ़ती ही जा रही हूं
क्यों खाली हाथ जिए जा रही हूं
क्या मेरा वजुद
मै भी यूं मुस्कुराई
जिन्दगी को अपनी बात सुनाई
चलना, आगे बढ़ना ही जीवन है
रूक गये तो मौत भी बदतर है
ठहरा पानी भी कीचड़ बन जाता है
बहता जल तो गंगाजल कहलाता हैं
जीवन चलने का नाम है
आगे बढ़ना ही ‌जानदार है
मेरे लफ्जो से..
शोभा रानी गोयल

शोभा गोयल

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