बाबा कैसे होते गाँव।
गाँव देखने का है चाव।।
घर कुछ छोटे बड़े गाँव में,
बच्चे खेलें सघन छाँव में,
बरगद पीपल नीम खड़े हैं,
कुछ छोटे कुछ बहुत बड़े हैं,
हरे -भरे पेड़ों की छाँव।
बाबा कैसे होते गाँव।।
चारों ओर खेत गाँवों के,
कहीं पेड़ सुंदर आमों के,
खेतों में सरसों गेहूँ की-
फ़सलें लहराती हैं जौ की,
कोयल कू -कू कौवे काँव।
बाबा कैसे होते गाँव।।
तालाबों में भैंस लोटतीं,
चरके बकरी गाय लौटतीं,
गली-गली में श्वान भौंकते,
चूहे बिल्ली देख चोंकते,
देता मुर्गा प्रातः बांग।
बाबा कैसे होते गाँव।।
नदिया में मछलियाँ तैरतीं,
मगरमच्छीयाँ धूप सेंकतीं,
टर्र-टर्र मेढक भी करते।
वर्षा में वहाँ साँप सरकते।
धीरे -धीरे- चलती नाव।
बाबा कैसे होते गाँव।।
झूले पड़ते हैं मनभावन,
जब आता है प्यारा सावन,
रिमझिम बूँदें मस्त फुहारें,
गाती बहनें गीत मल्हारें,
सघन आम की ठंडी छाँव।
बाबा कैसे होते गाँव।।
सावन भादों होती वर्षा,
पौधे लता मनुजमन हर्षा,
नदिया ताल गली गलियारे,
उफ़न-उफ़न कर बहते सारे,
टपके छत छप्पर की छांव।
बाबा कैसे होते गाँव।।
जाड़े ने जब झंडा गाड़ा,
दादी पीती खौला काढ़ा,
कोहरे की चादर तन जाती,
हम तुम सबको ठंड सताती,
चला न जाता नंगे पाँव।
बाबा कैसे होते गाँव।।
मोर नाचते छत अमराई,
प्रातः झेपुल टेर लगाई,
चें चें करती नित गौरैया,
निकल नीड़ से अपने छैयां,
आता पिड़कुलिया को ताव,
बाबा कैसे होते गाँव।।
अम्मा दुहती नित पय गाढा,
वर्षा गर्मी या हो जाड़ा,
दही बिलोती छाछ बनातीं,
थोड़ी लोनी भी चटवाती,
रुचिकर लगती वहाँ न चाय।
बाबा कैसे होते गाँव।।
जब आता है पर्व दिवाली,
स्वच्छ गाँव घर आँगन नाली,
मिट्टी के सब दिए जलाते,
खील खिलौने मिलकर खाते,
लक्ष्मी गणेश पूजन का चाव।
बाबा कैसे होते गाँव।।
होली रंगों का त्यौहार,
मेल -जोल का हर ब्यौहार,
रंग खेलते भर पिचकारी,
गुझिया पापड़ की भरमारी,
ऊँच नीच का कोई न भाव।
बाबा कैसे होते गाँव।।
आँख मिचौनी गिल्ली डंडा,
झुकी डाल पर हरियल डंडा,
फूल तरैया अटकन बटकन,
खेलें गुड़िया छट्टू छुट्टन,
घर तब जाना पहले दांव।
बाबा कैसे होते गाँव।।
अब वसंत की है अगवाई,
हँसते फूल कली मुस्काई,
सरसों ओढ़े चादर पीली,
बौरे अमुआ गूँज सुरीली,
बदले -बदले देखे हाव।
बाबा कैसे होते गाँव।।
लू की लपटें उड़ती धूल ,
फूले आक करील बबूल,
तपती धरती अवा समान,
छाया बैठे हुए किसान,
सूरज का बढ़ता नित ताव।
बाबा कैसे होते गाँव।।
सीमित साधन में संतोष,
हराभरा जनमन का कोष
सादा जीवन सरल विचार,
गरिमामय शुचि का संसार।
प्रतिस्पर्धा का बड़ा अभाव।
बाबा कैसे होते गाँव।।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम’