गज़ल
ज़रा सी नज़रे-इनायत सनम इधर कर दो
चाहे मुझपे इक एहसान समझकर कर दो
तमाम उम्र फिर अँधेरों में मैं जी लूँगा
मेरे नाम तुम बस अपनी एक सहर कर दो
मिज़ाज़पुर्सी को वो आएं चाहे न आएं
मैं बीमार हूँ इतनी उन्हें खबर कर दो
दबा के अपनी हथेली में मेरे कुछ आँसू
इन पानी की बूँदों को तुम गुहर कर दो
तुम्हारे वास्ते लाया हूँ बहुत सी खुशियाँ
इनको ले के अपने गम मेरी नज़र कर दो
— भरत मल्होत्रा