गीत/नवगीत

कितनी दफ़ा दिल को तोड़ोगे मेरे,

कितनी दफ़ा दिल को तोड़ोगे मेरे,
अब जानेमन कुछ तरस खा भी जाओ।
कबतक चलेंगें यूँ तन्हां अकेले,
तुम साथ मेरे कभी आ भी जाओ।।

कैसे भुलायें वो रातें थी प्यारी,
बैठे रहे थे करी बातें सारी।
मुद्दत से लब ये हँसे भी नहीं हैं
फिर गीत कोई सनम गा भी जाओ।।

मिलते रहेंगें तुम्हें लाखों साये,
बैठे रहेंगें हम पलकें बिछाये।
सूखा पड़ा है मुहब्बत में मेरी
बदली की तरह कभी छा भी जाओ।।

जलने लगा था ये सारा ज़माना,
लगने लगा साथ सदियों पुराना।
फिर से मिले प्यार हमको तुम्हारा
कुछ प्यार हमसे सनम पा भी जाओ।।

कितनी दफ़ा दिल को तोड़ोगे मेरे,
अब जानेमन कुछ तरस खा भी जाओ।

सौरभ दीक्षित मानस

नाम:- सौरभ दीक्षित पिता:-श्री धर्मपाल दीक्षित माता:-श्रीमती शशी दीक्षित पत्नि:-अंकिता दीक्षित शिक्षा:-बीटेक (सिविल), एमबीए, बीए (हिन्दी, अर्थशास्त्र) पेशा:-प्राइवेट संस्था में कार्यरत स्थान:-भवन सं. 106, जे ब्लाक, गुजैनी कानपुर नगर-208022 (9760253965) [email protected] जीवन का उद्देश्य:-साहित्य एवं समाज हित में कार्य। शौक:-संगीत सुनना, पढ़ना, खाना बनाना, लेखन एवं घूमना लेखन की भाषा:-बुन्देलखण्डी, हिन्दी एवं अंगे्रजी लेखन की विधाएँ:-मुक्तछंद, गीत, गजल, दोहा, लघुकथा, कहानी, संस्मरण, उपन्यास। संपादन:-“सप्तसमिधा“ (साझा काव्य संकलन) छपी हुई रचनाएँ:-विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में कविताऐ, लेख, कहानियां, संस्मरण आदि प्रकाशित। प्रेस में प्रकाशनार्थ एक उपन्यास:-घाट-84, रिश्तों का पोस्टमार्टम, “काव्यसुगन्ध” काव्य संग्रह,